सहचरिशरण के दोहे
यह मंजावलि मंजु वर, इस्क सिलीमुख-ग्राम।
रसिकन हृदय प्रबेस करि, राजत अति अभिराम॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere