नागार्जुन का परिचय
‘प्रगतिशील त्रयी’ के नागार्जुन का जन्म कब हुआ उन्हें भी ठीक से मालूम नहीं था। जोड़-घटाव से मान लिया गया कि 1911 की जून के किसी दिन वह पैदा हुए। नाम रखा गया ‘ठक्कन मिसिर’। बाबा वैद्यनाथ के आशीर्वाद से जन्म हुआ था, इसलिए परिष्कृत नाम रखा गया वैद्यनाथ मिश्र। वह दरभंगा के मैथिल ब्राह्मणों के परिवार से थे। उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्राम की संस्कृत पाठशाला में हुई। बाद में फिर काशी और कलकत्ता में संस्कृत का अध्ययन किया। काशी में रहते हुए ही उन्होंने अवधी, ब्रज, खड़ी बोली आदि का भी अध्ययन किया। मातृभाषा मैथिली में ‘वैदेह’ उपनाम से कविता लेखन की शुरुआत की। 1930 में मैथिली में लिखी उनकी पहली कविता छपी और 1932 में अपराजिता से उनका विवाह हुआ। वे घुमंतू स्वभाव के थे। विवाह के बाद भी लगभग घुमंतू जीवन ही रहा, देशाटन भी किया। लंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और नाम बदलकर ‘नागार्जुन’ कर लिया। यहीं बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया और कामचलाऊ अँग्रेज़ी और पालि भाषा सीखी। 1938 में भारत लौटे तो किसान आंदोलन में भागीदारी की, तीन बार जेल गए। आठ-आठ पृष्ठों की मैथिली काव्य पुस्तिका तैयार कर ट्रेन में बेची। मैथिली उन्हें ‘यात्री’ उपनाम से पहचानती है।
नागार्जुन ‘जनकवि’ कहे जाते हैं। उनके काव्य की अंतर्वस्तु का दायरा वृहत है। सामंती व्यवस्था और सोच, जीवन की विसंगतियाँ और अंतर्विरोध, राजनीतिक व्यंग्य, निजी जीवन-प्रसंग, प्रकृति चित्रण जैसे तमाम विषय उनकी कविताओं में उतरे हैं। अरुण कमल उनकी कविताओं के बारे में कहते हैं- ‘‘मिथिला के रुचिर भूभाग से लेकर मुलुंड के अति सुदूर प्रदेश तक फैली हुई काव्य भूमि, बिहार के सामंती उत्पीड़न से लेकर अमरीकी साम्राज्यवाद तक की शोषण-शृंखला, भूमिहीन मज़दूरों के दुर्दम संघर्ष से लेकर जूलियन रोजनबर्ग की महान संघर्ष गाथा और नितांत व्यक्तिगत जीवन-प्रसंगों से प्राप्त सुख-दुःख से लेकर बाक़ी सारे जगत के सुख-दुःख मोतिया नेवले और मधुमती गाय तक के, यह चौहद्दी है नागार्जुन के काव्य-महादेश की।’’ राजनीतिक और समकालीन संवाद की अपनी चर्चित कविताओं में उन्होंने व्यंग्य को हथियार की तरह इस्तिमाल किया है। नामवर सिंह उन्हें कबीर के बाद हिंदी का सबसे बड़ा व्यंग्यकार बताते हैं। उनके पास कविता कहने के हज़ार ढंग थे। उनकी भाषा भी अपना तेवर बदलती रहती है।
नागार्जुन ने मैथिली, संस्कृत और हिंदी में काव्य रचना के अलावे उपन्यास, कहानी, निबंध भी लिखे हैं। उन्होंने अनुवाद विधा में भी योगदान किया है।
‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘तुमने कहा था’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘हज़ार-हज़ार बाहों वाली’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘रत्न गर्भ’, ‘ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या!!’, ‘आख़िर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘इस ग़ुब्बारे की छाया में’, ‘भूल जाओ पुराने सपने’, ‘अपने खेत में’ उनके हिंदी काव्य-संग्रह हैं। उन्होंने ‘भस्मांकुर’ नामक खंड-काव्य भी लिखा है। मैथिली में ‘चित्रा’ और ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनकी कहानियाँ ‘आसमान में चंदा तेरे’ में संकलित हैं जबकि निबंधों का संकलन ‘अन्नहीनम’ और ‘क्रियाहीनम’ में किया गया है। ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘वरुण के बेटे’, ‘बाबा बटेसर नाथ’, ‘दुखमोचन’, ‘इमरितिया’, ‘उग्रतारा’, ‘जमनिया के बाबा’, ‘कुंभीपाक’, ‘अभिनंदन’, ‘नई पौध’ और ‘पारो’ उनके उपन्यास हैं। उन्होंने मेघदूत, गीत गोविंद और विद्यापति की पदावली का हिंदी अनुवाद किया है।
नागार्जुन रचना संचयन (संपादक : राजेश जोशी), नागार्जुन: चुनी हुई रचनाएँ (वाणी प्रकाशन) और नागार्जुन रचनावली (सात खंड, संपादक शोभाकांत) उनकी कृतियों का समग्र संचयन है। इसके अतिरिक्त, नागार्जुन पर केंद्रित विशिष्ट साहित्य भी उपलब्ध हैं।
उन्हें 1969 में ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (मैथिली) के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।