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चिश्ती संप्रदाय के संत शेख़ बुरहान के शिष्य। जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह के आश्रित। प्रेम में त्याग और कष्टों के सुंदर वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

चिश्ती संप्रदाय के संत शेख़ बुरहान के शिष्य। जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह के आश्रित। प्रेम में त्याग और कष्टों के सुंदर वर्णन के लिए उल्लेखनीय।

कुतुबन का परिचय

अभी तक हिंदी सूफ़ी कवियों के संबंध में जितनी भी जानकारी प्राप्त हुई है, उसके आधार पर मुल्ला दाऊद को हिंदी का पहला सूफ़ी कवि मान सकते हैं तथा कुतुबन को दूसरा। कुतुबन ईस्वी की पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तथा सोलहवीं शताब्दी के प्रथम भाग में वर्तमान थे।

इनकी एक रचना ‘मृगावती’ का ही अभी तक पता चला है। 'मृगावती' का जितना भी अंश प्राप्त है, उसी में कुतुबन के संबंध में कुछ जानकारी प्राप्त हो जाती है। कुतुबन ने 'मृगावती' में अपने काल के शासक का नाम हुसैनशाह बतलाया है। हुसैनशाह जौनपुर के शासक थे। कुतुबन शेख बुढ़न के शिष्य थे। कुतुबन के जीवन के संबंध में अभी तक इससे अधिक कुछ भी ज्ञात नहीं है। वैसे 'मृगावती' में ग्रंथ का रचनाकाल 1503 ई. और ग्रंथ पूर्ति में लगने वाला समय दो महीने दस दिन दिया है।

कुतुबन के गुरु को लेकर विद्वानों में मतभेद है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उनके गुरु का नाम शेख बुरहान बतलाया है। परशुराम चतुर्वेदी बुड्ढन को कुतुबन का गुरु मानते हैं। मुसलमान इतिहासकारों ने बतलाया है कि वे बड़े उदार और सभी धर्मों की अच्छाई को स्वीकार करते थे। इसीलिए सिकंदर लोदी ने उन्हें मरवा डाला।

'मृगावती' का जितना भी अंश प्राप्त है उससे कुतुबन की कवित्व शक्ति का पता चलता है। कुतुबन ने काव्य-रूढ़ि तथा कथानक-रूढ़ियों में भारतीय परंपरा का पालन किया है। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि 'मृगावती' की रचना जिस कहानी के आधार पर हुई है उसका प्रचार पहले से ही था। छंदों के संबंध में भी कवि ने स्पष्ट ही कहा है कि दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल आदि छंदों के सहारे उसने कथा की रचना की है। कुतुबन ने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। हिंदी के सूफ़ी कवियों का कुतुबन ने पथ-प्रदर्शन किया है।

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