कृपानिवास के दोहे
प्रथम चारु शीला सुभग, गान कला सु प्रवीन।
जुगुल केलि रसना रसित, राम रहस रसलीन॥
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सखी पद्म गंगा सुभग, भूषन सेवत अंग।
सदा विभूषित आप तन, जुगुल माधुरी रंग॥
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हेमा कर वीरी सदा, हँसि दंपति मुख देत।
संपति राग सुहाग की, सौभागिनि उर हेत॥
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सुभगा सुभग सिरोमनि, सेज सोहाई सेव।
सिय वल्लभ सुख सुरति रस, सकल जानि साभेव॥
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क्षेमा समै प्रबंध कर, वसन विचित्र बनाय।
सुरुचि सुहावन सुखद सब, पिय प्यारी पहिराय॥
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सखी वरारोहा हरषि, भोजन युगल जिमाय।
प्रान प्राननी प्रान सुख, राखति प्रान लगाय॥
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संबंधित विषय : बांग्ला कविता
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lakshamna man lakshgun, pushp vibhushan saji.
bihansi bihansi pahiravhi, siy vallabh maharaj॥
lakshamna man lakshgun, pushp vibhushan saji.
bihansi bihansi pahiravhi, siy vallabh maharaj॥
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ali sulochana chitrvit, anjan tilak sanvari.
ang rasi siy laal ke, kari jivati shringar॥
ali sulochana chitrvit, anjan tilak sanvari.
ang rasi siy laal ke, kari jivati shringar॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere