खूब चंंद्र के दोहे
आवत सखी बसंत के, कारन कौन विशेष।
हरष त्रिया को पिया बिना, कोइल कूकत देख॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere