केदारनाथ सिंह का परिचय
मूल नाम : केदारनाथ सिंह
जन्म : 07/07/1934 | बलिया, उत्तर प्रदेश
समकालीन कविता के सशक्त कवि केदारनाथ सिंह का जन्म 7 जुलाई 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चकिया गाँव में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई, फिर उच्च शिक्षा के लिए बनारस में रहे। उन्होंने अपना शोध ग्रंथ ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब विधान’ आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में पूरा किया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने बांग्ला सीखी और रवींद्रनाथ टैगोर के बांग्ला साहित्य को पढ़ने का प्रयास किया। वह तब ब्रिटिश कवि डाइलेन टामस, अमरीकी कवि वालेस स्टीवेंस और फ़्रेंच कवि रेने शा के प्रशंसक भी रहे थे और उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद किया था।
केदारनाथ सिंह की कविता यात्रा का आरंभ एक गीतकार के रूप में हुआ। वह अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित ‘तीसरा सप्तक’ (1959) के सात कवियों में से एक थे। सप्तक में शामिल गीतों और कविताओं ने उन्हें साहित्यिक दुनिया से परिचित कराया। उनका पहला कविता संग्रह ‘अभी, बिल्कुल अभी’ 1960 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की कविताओं की नवीनता और तात्कालिकता ने तुरंत ही उन्हें एक अलग पहचान दिलाई।
उनका दूसरा कविता संग्रह ‘ज़मीन पक रही है’ बीस वर्षों के लंबे संयम और अंतराल के बाद 1980 में आया। इस संग्रह के साथ वह कविता समकाल के समादृत कवि के रूप में स्थापित हुए। वह बिंब-विधान और शिल्प-विधान के अपूर्व कवि कहे जाते हैं जिनके पास कविता की सरल भाषा और सरस संप्रेषण है। बिंबों की नवीनता, ठेठ देसी प्रतीकों का परिष्कृत प्रयोग, कथाओं-उपकथाओं का उपयोग, कविता में वार्तालाप और मुक्त छंद में भी एक गीतात्मक लय का प्रवाह उनकी विशिष्टता है। वह अपनी काव्य संवेदना में भारतीय नागर और पुरबिहा होने के साथ ही एक विश्व नागरिक होने की प्रतिभा दर्शाते हैं। बाद की पीढ़ियों पर उनकी कविताओं का एक संतुलित प्रभाव देखा जाता है।
केदारनाथ सिंह की कविताओं का रोमानी ‘अपनापन’ उन्हें वृहत कविता पाठकों से जोड़ता है। यही कारण है कि इंटरनेट के उपयोग में इज़ाफ़े और सोशल मीडिया के आगमन के साथ केदारनाथ सिंह की लोकप्रियता में और वृद्धि हुई है। वह साहित्यिक कविताओं के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक हैं। उनकी कुछ कविताएँ/कविता पंक्तियाँ हिंदी कविता की सर्वाधिक उद्धृत पंक्तियों में शामिल हैं।
केदारनाथ सिंह अध्यापन के पेशे से जुड़े रहे थे। कई महाविद्यालयों में अध्यापन के बाद वह 1976 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र से जुड़े जहाँ बतौर आचार्य और अध्यक्ष अपनी सेवा दी। उनकी कविताओं पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हुए हैं। उनकी कविताओं का अनुवाद सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के साथ ही अँग्रेज़ी, जर्मन, रूसी, स्पेनिश आदि विदेशी भाषाओं में भी हुआ है।
‘अभी बिल्कुल अभी’ (1960), ‘ज़मीन पक रही है’ (1980), ‘यहाँ से देखो’ (1983), ‘अकाल में सारस’ (1988), ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’ (1995), ‘बाघ’ (1996), ‘तालस्ताय और साइकिल’ (2005) और ‘सृष्टि पर पहरा’ (2014) उनके काव्य-संग्रह हैं। उनकी चयनित कविताओं के कुछ अन्य संग्रह भी प्रकाशित हैं। ‘कल्पना और छायावाद’, ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब-विधान’, ‘मेरे समय के शब्द’, ‘क़ब्रिस्तान में पंचायत’ के रूप में उन्होंने गद्य में योगदान किया है। इसके अतिरिक्त, ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) उनके संपादन में प्रकाशित हुआ है।
उन्हें ‘अकाल में सारस’ के लिए 1989 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 2014 में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।