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जसिंता केरकेट्टा

1983 | राँची, झारखंड

नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी-संवेदना और सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

नई पीढ़ी की कवयित्री। आदिवासी-संवेदना और सरोकारों के लिए उल्लेखनीय।

जसिंता केरकेट्टा का परिचय

जन्म : 03/08/1983 | राँची, झारखंड

जसिंता केरकेट्टा आदिवासी संवेदना और सरोकारों की नई पीढ़ी की कवयित्री हैं। उनका जन्म झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खुदपोस गाँव में एक ग़रीब आदिवासी परिवार में हुआ। हाट-बाज़ार में इमली बेचकर परिवार को आर्थिक सहयोग देने के बीच उन्होंने अपनी लगन से पढ़ाई जारी रखी और लगातार कठिनाइयों का सामना किया। कॉलेज की पढ़ाई के लिए उनकी माँ ने ज़मीन गिरवी रख उन्हें पैसे दिए। पढ़ाई के ख़र्च के लिए कई छोटे-मोटे कार्य करती रहीं। संघर्ष के इन्हीं दिनों में उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू की जहाँ उनका व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत दुःख में अभिव्यक्त होता हुआ अपने समाज के विमर्श को आगे लेकर बढ़ा।  

उनकी काव्य-संवेदना के लिए कहा गया है कि गहरी, अचेतन, अनकही भावनाओं को शब्दों—और छवियों—में पिरोने की जसिंता की कला अनूठी है, और अपनी इसी कला से वह इन भावनाओं को वास्तविकता का रूप देती है।

उनकी पहली किताब 2016 में आदिवाणी प्रकाशन, कोलकाता से हिंदी-अँग्रेज़ी में छपी थी। इसके बाद इस किताब को जर्मन के प्रकाशन द्रौपदी वेरलाग ने ग्लूट नाम के नाम से इसे हिंदी-जर्मन में प्रकाशित किया। इस किताब की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए प्रकाशक ने इसे दोबारा छापा। इसके बाद भारतीय ज्ञानपीठ ने जर्मन प्रकाशन द्रौपदी वेरलाग और हाइडलबर्ग के साथ मिलकर उनके काव्य-संग्रह ‘जड़ों की ज़मीन’ को हिंदी-अँग्रेज़ी और हिंदी-जर्मन में एक साथ प्रकाशित किया। उनसे पहले झारखंड की किसी भी आदिवासी कवि की कविताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ तीन भाषाओं में कभी प्रकाशित नहीं किया गया था।

उनकी कविताओं का अनुवाद कई देशी-विदेशी भाषाओं में हुआ है। इसके साथ ही उन्हें काफ़ोस्करी यूनिवर्सिटी, मिलान यूनिवर्सिटी, तुरिनो यूनिवर्सिटी, ज्यूरिख यूनिवर्सिटी जैसे कई मंचों से कविता-पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। उन्हें कई देशों के आमंत्रण प्राप्त हुए हैं जहाँ उन्होंने अपनी कविताओं पर संवाद किया है। उन्हें इटली के तुरीनो शहर में आयोजित 31 वें इंटरनेशनल बुक फ़ेयर में भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर उनके कविता-संग्रह ‘अंगोर’ के इतालवी अनुवाद ‘ब्राचे’ का लोकार्पण भी हुआ जिसे इटली के मिराजी प्रकाशन ने छापा है।  

उन्हें कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से नवाज़ा गया है जिसमें विशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार, झारखंड इंडीजिनस पीपुल्स फ़ोरम, एआईपीपी थाईलैंड का इंडीजिनस वॉयस ऑफ़ एशिया का रिकॉग्निशन अवार्ड, छोटा नागपुर सांस्कृतिक संघ का प्रेरणा सम्मान शामिल हैं। उनकी कविताओं का पंजाबी, उर्दू, गुजराती, मराठी, असमिया, कन्नड़, तमिल, संथाली आदि भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है।

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