हृदयराम का परिचय
हृदयराम का जन्म पंजाब में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्णदास था। हृदयराम ने कवित्त और सवैया छंदों में सन् 1623 ई. में ‘हनुमन्नाटक’ की रचना की जिसका आधार संस्कृत का ‘हनुमन्नाटक’ है। हृदयराम की भाषा बड़ी प्रौढ़ एवं परिमार्जित है। ‘हनुमन्नाटक’ यद्यपि नाटकीय शैली में लिखी गयी रचना है किंतु इसे नाटक नहीं कहा जा सकता। यद्यपि यह सत्य है कि इसके संवाद बड़े मनोरम एवं उपयुक्त हैं, फिर भी नाटक होने के लिए उनमें जिन गुणों की आवश्यकता है, उनका उसमें अभाव है।
डा. गोपीनाथ तिवारी ने बड़े श्रम से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि इसमें केवल संवादप्रधान प्रबंधात्मक शैली अपनायी गयी है, अन्यथा इसकी भाषा सरल है, पात्र का चरित्र-चित्रण किया गया है और जननाट्य-शैली का अनुसरण किया गया है। ‘हनुमन्नाटक’ की प्रबंधात्मक शैली भी लोगों ने अपनायी। तुलसीदास ने प्रायः सभी काव्य शैलियों को अपनाया था, केवल नाटकीय शैली का कहीं उपयोग नहीं किया था, हृदयराम की रचना राम-भक्ति संबंधी रचनाओं में यह शैली भी सुंदर ढंग से आ गयी है। अपने समय की नाटकीय शैली में लिखित सभी रचनाओं में हृदयराम का विशेष महत्त्व भी इसी के कारण है। ‘हनुमन्नाटक’ का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से हुआ है। ‘सुदामाचरित्र’ तथा ‘रुक्मिणी मंगल’ हृदयराम की अन्य रचनाएँ हैं।