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गिरिधारन

1833 - 1860 | बनारस, उत्तर प्रदेश

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

वास्तविक नाम गोपालचंद्र। आधुनिक साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता।

गिरिधारन की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 17

उद्यम में निद्रा नहीं, नहिं सुख दारिद माहिं।

लोभी उर संतोष नहिं, धीर अबुध में नाहिं॥

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अति चंचल नित कलह रुचि, पति सों नाहिं मिलाप।

सो अधमा तिय जानिये, पाइय पूरब पाप॥

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उद्यम कीजै जगत में, मिले भाग्य अनुसार।

मोती मिले कि शंख कर, सागर गोता मार॥

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लोभ कबहूं कीजिये, या में विपति अपार।

लोभी को विश्वास नहिं, करे कोऊ संसार॥

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सुख में संग मिलि सुख करै, दुख में पाछो होय।

निज स्वारथ की मित्रता, मित्र अधम है सोय॥

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सवैया 13

कवित्त 1

 

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