गिरिधर पुरोहित के दोहे
गोपिन केरे पुंज में, मधुर मुरलिका हाथ।
मूरतिवंत शृंगार-रस, जय-जय गोपीनाथ॥
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पूरन प्रेम प्रताप तै, उपजि परत गुरुमान।
ताकी छवि के छोभ सौं, कवि सो कहियत मान।
आन नारि के चिह्न तैं, लखि सुनि श्रवननि नाउ।
उपजि परत गुरुमान तहं, प्रीतम देखि सुभाउ॥
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