गर्व पर दोहे
गर्व वैसे तो नकारात्मक
और सकारात्मक दोनों ही अर्थों में अहंभाव को प्रकट करता है, लेकिन प्रस्तुत संचयन में इसके विविध आयामों से गुज़रा जा सकता है।
पूरन प्रेम प्रताप तै, उपजि परत गुरुमान।
ताकी छवि के छोभ सौं, कवि सो कहियत मान।
आन नारि के चिह्न तैं, लखि सुनि श्रवननि नाउ।
उपजि परत गुरुमान तहं, प्रीतम देखि सुभाउ॥