घनानंद की संपूर्ण रचनाएँ
दोहा 1
जानराय! जानत सबैं, असरगत की बात।
क्यौं अज्ञान लौं करत फिरि, मो घायल पर घात॥
हे सुजान! तुम मेरे मन की सभी बातें जानती हो। तुम जानती हो कि मैं घायल हूँ। घायल पर चोट करना अनुचित है, इसे भी तुम जानती होंगी, सुजानराय जो ठहरीं। फिर भी तुम मुझ घायल पर आघात कर रही हो, यह अजान की भाँति आचरण क्यों कर रही हो! तुम्हारे नाम और आचरण में वैषम्य है।
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