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गंगाधर मेहेर

1862 - 1924 | बारगढ़, ओड़िशा

‘स्वभाव’ कवि’ के रूप में समादृत ओड़िया कवि। प्रकृति और प्रणय संबंधी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

‘स्वभाव’ कवि’ के रूप में समादृत ओड़िया कवि। प्रकृति और प्रणय संबंधी कविताओं के लिए उल्लेखनीय।

गंगाधर मेहेर के उद्धरण

मेरा शरीर जलकर अवश्य राख होगा और वृक्षों में खाद के रूप में उपयोगी होगा। जब उस वृक्ष की लकड़ी लेकर बढ़ई अपने कौशल से प्रभु के लिए पादुका बनाएगा, उस समय भी (उसमें स्थित) मुझे प्रभु की पद-सेवा का सौभाग्य मिलेगा ही।

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