गंग का परिचय
मूल नाम : गंगाधर
जन्म :इटावा, उत्तर प्रदेश
गंग के विषय में अभी तक कोई निश्चित वृत्त ज्ञात नहीं हो सका है। प्रसिद्ध है कि गंग भट्ट नाम के एक कवि अकबर के दरबार में रहते थे। गंग कवि को कुछ लोग ब्राह्मण मानते हैं। इनके संबंध में जो कुछ वृत्त ज्ञात हुआ है उससे विदित होता है कि इस नाम के एक ही कवि थे और ये ब्रह्मभट्ट थे। ये अकबर के दरबार में रहते थे। इन्हीं को ब्राह्मण भी कहा गया है। इनका जन्म वर्ष 1538 ई. माना जाता है। कहते हैं कि रहीम इनका बहुत सम्मान करते थे। ये बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल के भी कृपापात्र थे। गंग के नाम से ‘चंद छंद बरनन की महिमा' नामक एक खड़ी-बोली गद्य की पुस्तक प्रसिद्ध है, जिसमें प्रत्यक्ष रूप में अकबर का उल्लेख हुआ है। यदि इसे प्रामाणिक माना जाय तो गंग का अकबर के दरबार में होना सिद्ध होता है। 'गंग ऐसे गुनी को गयंद से चिराइये' तथा 'गंग को लेन गनेश पठाये’ आदि कथनों से इस किंवदंती की पुष्टि होती है कि इन्हें किसी राजा ने हाथी से कुचलवाकर मरवा डाला था। पर यह स्पष्टतः नहीं कहा जा सकता कि वह राजा कौन था। कहते हैं कि नूरजहाँ का भाई जेन खाँ इनसे रुष्ट हो गया था, जिसके कारण इन्हें जहाँगीर का कोपभाजन होना पड़ा। गंग जैसे स्पष्टवादी तथा निर्भीक प्रकृति के व्यक्ति का ऐसे कष्ट में पड़ जाना तत्कालीन स्थिति के अनुरूप है। यह घटना प्रायः 1625 ई. की मानी गयी है। इसका साक्ष्य 'सब देवन को दरबार जुर्यो' से प्रारंभ होने वाले सवैया में तथा गंग की इन पंक्तियों में भी निहित माना जाता है :
‘संगदिल शाह जहाँगीर से उमंग आज,
देते है मतंग मद सोई गंग छाती में।’
चंद्रबली पांडे के विचार हैं कि ब्राह्मणों के उकसाने पर अकबर के मंत्री बैरम खाँ ने ही गंग को यह दंड दिया था।
गंग की तीन रचनाएँ 'गंगपदावली', 'गंग पचीसी', और 'गंगरत्नावली' उपलब्ध है। ‘चंद छंद बरनन की महिमा' इनकी एक अन्य कृति कही जाती है, जो खड़ी-बोली गद्य की पहली रचना मानी गयी है। गंग की अद्यावधि प्राप्त रचनाओं का एक सुसंपादित संस्करण 'गंग कवित्त' नाम से काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हो चुका है। इनके 'दिग्विजय भूषण' में उद्धृत तीन छंद ऐतिहासिक संदर्भों को प्रस्तुत करते हैं। दो में बीरबल तथा रहीम की दानशीलता का वर्णन है और एक में मिर्ज़ा भावसिंह (मिर्जा जयसिंह के पिता) के किसी पठान (जालौर के शासक गजनी खाँ) से युद्ध का वर्णन है।
गंग के अनेक कवित्त काव्य-रसिकों की मंडलियों में कहे-सुने जाते हैं। निःसंदेह इनमें एक सच्चे कवि की प्रतिभा थी और इनके समय में इनकी अच्छी ख्याति थी। इनके काव्य में आलंकारिक चमत्कार उक्ति-वैचित्र्य तथा वाग्वैदग्ध्य तो पाया जाता है, पर साथ ही सरसता तथा मार्मिकता भी पर्याप्त है। हिंदी के मध्ययुगीन कवियों में उनकी चर्चा सर्वोच्च कोटि के कवियों के साथ महाकवि के रूप में होती रही है। इसीलिए भिखारीदास ने तुलसीदास के साथ इनका उल्लेख किया है :
‘तुलसी गंग दोउ भये सुकविन के सरदार।