डोंभिपा का परिचय
उपनाम : 'डोंभिपा, डोंभिपाद'
डोंभिपा वीरूपा के शिष्य थे। इनका जन्म मगध के क्षत्रिय वंश में सन् 840 ई. के आसपास हुआ था। विरूपा से उपदेश पाकर ये महामुद्रा की साधना करने लगे। तदनंतर प्रजा तथा मंत्रियों ने इन्हे राज्य से निर्वासित कर दिया। बहुत दिनों बाद इनके राज्य में अकाल पड़ा तब ये अपनी सिंहनी-रूपिणी शक्ति के साथ अपने राज्य में वापस आए। प्रजा ने इन्हें पहचाना और इनका शिष्यत्व स्वीकार किया। ये वीणापा के समकालीन थे। तारानाथ ने यह भी उल्लेख किया है कि इन्होंने तथा वीणापा ने सहजयोगिनी चिंता को दीक्षा दी थी। तारानाथ ने नारोपा के भी एक शिष्य को नव आचार्य डोंबी बताया है। वे चरवाहे थे। इनके एक अनूदित ग्रंथ ‘सहज सिद्धि’ से यह ज्ञात होता है कि इन्होंने कौल-पद्धति का विशेष प्रचार किया था।
इनके लिखे हुए 21 ग्रंथ बताए जाते हैं जिनमें ‘डोम्बि गीतिका’, ‘योगचर्या’, अक्षरद्विकोपदेश’ आदि प्रसिद्ध है।