फूलसों फूलनि ऐन रची सुख सैन सुदेश सुरंग सुहाई।
लाड़िलीलाल बिलास की रासि ओ पानिप रूप बढ़ी अधिकाई॥
सखी चहूँओर बिलौकैं झरोखनि जाति नहीं उपमा ध्रुव पाई।
खंजन कोटि जुरे छबि के ऐंकि नैननि की नव कुंज बनाई॥
दोहा-नवल रंगीली कुंज में, नवल रंगीले लाल।
नवल रंगीली खेल रचो, चितवनि नैन बिशाल॥