छीतस्वामी का परिचय
छीतस्वामी वल्लभ संप्रदाय (पुष्टिमार्ग) के आठ कवियों (अष्टछाप) में से एक थे। अष्टछाप के कवियों में एकमात्र छीत स्वामी ही थे जिन्होंने जीवनपर्यंत गृहस्थ-जीवन बिताते हुए घर में रहकर श्रीनाथजी की कीर्तन-सेवा की। ये मथुरा के रहनेवाले थे। इनका जन्म अनुमानतः सन् 1510 ई. के आसपास और स्वर्गवास सन् 1585 ई. में हुआ था। इनका प्रारम्भिक जीवन बहुत उच्शृंखल और उदंडतापूर्ण था। छीतस्वामी का इतिवृत्त ‘भक्तमाल’ जैसे भक्त-गुण-गायक ग्रंथों में नहीं मिलता। श्री गोकुलनाथ कृत ‘वार्ता’, हरिराय जी कृत ‘वार्ता’ की टीका ‘भावप्रकाश’, प्राणनाथ कवि कृत ‘संप्रदाय कल्पद्रुम’, एवं श्रीनाथ भट्ट कृत ‘संस्कृत वार्ता-मणिमाला’ आदि ग्रंथों में ही मिलता है।
वार्ता में लिखा है कि ये बड़े मसखरे, लंपट और गुंडे थे। एक बार गोसाईं विट्ठलनाथ की परीक्षा लेने के लिए वे अपने चार चौबे मित्रों के साथ उन्हें एक खोटा रुपया और एक थोथा नारियल भेंट करने गये, किंतु विट्ठलनाथ को देखते ही इन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने हाथ जोड़कर गोसाईं जी से क्षमा याचना की और उनसे शरण में लेने की प्रार्थना की। शरण में लेने के बाद गोसाईंजी ने श्रीनाथजी की सेवा-प्रणाली के निर्माण में छीतस्वामी से बहुत सहायता ली। महाराज बीरबल के वे पुरोहित थे और उनसे वार्षिक वृत्ति पाते थे। एक बार बीरबल को उन्होंने एक पद सुनाया, जिसमें गोस्वामीजी की साक्षात् कृष्ण के रूप में प्रशंसा वर्णित थी। बीरबल ने उस पद की सराहना नहीं की। इस पर छीत स्वामी अप्रसन्न हो गये और उन्होंने बीरबल से वार्षिक वृत्ति लेना बंद कर दिया। गोसाईंजी ने लाहौर के वैष्णवों मे उनके लिए वार्षिक वृत्ति का प्रबन्ध कर दिया। कविता और संगीत दोनों में छीतस्वामी बड़े निपुण थे। प्रसिद्ध है कि अकबर भी उनके पद सुनने के लिए वेष बदलकर आते थे।
छीतस्वामी कृत कुछ विशेष साहित्य नहीं मिलता। उनके केवल 64 पदों का पता चला है। उनका वर्य-विषय भी वही है, जो अष्टछाप के अन्य प्रसिद्ध कवियों के पदों का है यथा—आठ पहर की सेवा, कृष्णलीला के विविध प्रसंग, गोसाईंजी की बधाई आदि। पुष्टि संप्रदाय में नित्य उत्सव विशेष पर गाए जाने वाले संग्रह-ग्रंथों में छीतस्वामी के ‘नित्यकीर्तन’, ‘वर्षोत्सव’ तथा ‘वसंतधमार’ से संबंधित पद मिलते हैं। इनके पदों का एक संकलन विद्या-विभाग, कांकरोली में 'छीतस्वामी' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। छीतस्वामी की रचनाओं में संगीत सौंदर्य, ताल और लय एवं स्वरों का एक रागनिष्ठ मधुर मिश्रण देखा जा सकता है। अष्टछाप परंपरा में छीतस्वामी का महत्त्वपूर्ण स्थान है।