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छीहल

जैन कवि। काव्य में विरह के करुण आवेगों का सरस वर्णन।

जैन कवि। काव्य में विरह के करुण आवेगों का सरस वर्णन।

छीहल का परिचय

16 वीं शताब्दी के अंतिम चरण के जैन कवियों में छीहल सबसे अधिक चर्चित कवि रहे हैं। रामचंद्र शुक्ल के हिंदी साहित्य के इतिहास से लेकर सभी इतिहासकारों ने किसी न किसी रूप में छीहल का नामोल्लेख अवश्य किया है। छीहल के राजस्थानी कवि होने के कारण राजस्थानी विद्वानों ने भी अपने-अपने इतिहास में उनकी रचनाओं का परिचय दिया है।

सर्वप्रथम रामचंद्र शुक्ल ने छीहल का उल्लेख करते हुए लिखा है कि "ये राजपुताने की ओर के थे। संवत् 1575 में उन्होंने 'पंच सहेली' नाम की एक छोटी सी पुस्तक दोहों में राजस्थानी मिश्रित भाषा में बनाई जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती। इसमें पाँच सखियों की विरह वेदना का वर्णन है। इनकी लिखी 'बावनी' भी है जिसमें 52 दोहे हैं।" डॉ. रामकुमार वर्मा ने 'हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' में कवि की 'पंच सहेली' के परिचय के साथ ही उनके संबंध में अपना अभिमत लिखा है कि "इनका कविता काल संवत् 1575 माना जाता है। इनकी 'पंच सहेली' नामक रचना प्रसिद्ध है। भाषा पर राजस्थानी प्रभाव यथेष्ट है क्योंकि ये स्वयं राजपुताने के निवासी थे। रचना में वियोग शृंगार का वर्णन ही प्रधान है।" 'मिश्रबंधु विनोद' में छीहल का वर्णन रामचंद्र शुक्ल एवं रामकुमार वर्मा के परिचय के आधार पर किया गया है। उद्धरण भी शुक्ल वाला ही दिया गया है। वे लिखते हैं कि "इन्होंने संवत् १५७५ में 'पंच सहेली' नामक पुस्तक बनाई जिसमें पाँच अबलाओं की विरह वेदना का वर्णन है और फिर उनके संयोग का भी कथन है। इनकी भाषा राजपुताने की है और इनकी कविता में छंदोभंग भी है। इनकी रचना से जान पडता है कि ये मारवाड़ की तरफ़ के रहने वाले थे क्योंकि उन्होंने तालाबों आदि का वर्णन बड़े प्रेम से किया है।" डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपनी पुस्तक 'सूर पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य' में छीहल का सबसे अच्छा मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। यही नहीं, उन्होंने रामचंद्र शुक्ल एवं डॉ. रामकुमार वर्मा के मत का उल्लेख करते हुए कवि के संबंध में अपना अभिमत दिया है : "आचार्य शुक्ल ने छीहल के बारे में बड़ी निर्ममता के साथ लिखा। 'पंच सहेली' को बुरी रचना कहने की बात समझ में आ सकती है क्योंकि इसे रुचि भिन्नता मान सकते हैं। किंतु बावनी के बारे में इतने संदिग्ध भाव से विचार किया यह ठीक नहीं है। बावनी 52 दोहों की एक छोटी रचना नहीं है बल्कि इसमें अत्यंत उच्चकोटि के 53 छप्पय छंद हैं।" डॉ. रामकुमार वर्मा ने छीहल की 'पंच सहेली' का ही जिक्र किया है। वर्मा जी ने छीहल की कविता की श्रेष्ठता-निकृष्टता पर कोई विचार नहीं दिया किंतु उन्होंने 'पंच सहेली' की वास्तविकता का सही विवरण दिया है।" 'राजस्थानी साहित्य का इतिहास' पुस्तक में हीरालाल महेश्वरी ने छीहल कवि का राजस्थानी कवियो में उल्लेखनीय स्थान स्वीकार करते हुए उनकी 'पंच सहेली' और 'बावनी' को काव्यत्व से भरपूर एवं बोलचाल की राजस्थानी में बहुत ही अनूठी रचनाएँ मानी हैं। डॉ. प्रेमसागर जैन ने छीहल को सामर्थ्यवान कवि माना है। तथा उनकी चार रचनाओं का नामोल्लेख किया है।

छीहल के संबंध में प्रायः 'पंच सहेली' कृति की चर्चा की जाती है और यह ग्रंथ ही उनकी कीर्ति का आधारभूत ग्रंथ है। इस ग्रंथ में कवि ने पाँच प्रोषितपतिका नायिकाओं मालिन, तंबोलिन, छीपन, कलालिन और सुनारिन की विरह वेदना का मार्मिक वर्णन किया है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि वियोग वर्णन के तमाम उपमान इन स्त्रियों की रोजमर्रा जिंदगी से संबंधित है। जैसे सुनारिन की स्वर्ण देह विरह में छीजती है तो मालिन की देह लता के समान है जो स्नेह के अभाव में कुम्हला गई है। कलालिन की देह भट्टी के समान तपती रहती है। कवि छीहल के अनुभव के कारण विप्रलंभ और संभोग शृंगार निरूपण प्रमाणिक ढंग से हुआ है।

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