बुल्ला साहब के दोहे
आठ पहर चौंसठ घरी, जन बुल्ला घर ध्यान।
नहिं जानो कौनी घरी, आइ मिलैं भगवान॥
-
संबंधित विषय : सुमिरन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
अछै रंग में रंगिया, दीन्ह्यो प्रान अकोल।
उनमुनि मुद्रा भस्म धरि, बोलत अमृत बोल॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
जग आये जग जागिये, पागिये हरि के नाम।
बुल्ला कहै बिचारि कै, छोड़ि देहु तन धाम॥
-
संबंधित विषय : सुमिरन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बिना नीर बिनु मालिहीं, बिनु सींचे रंग होय।
बिनु नैनन तहँ दरसनो, अस अचरज इक सोय॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
बोलत डोलत हँसि खेलत, आपुहिं करत कलोल।
अरज करों बिन दामहीं, बुल्लहिं लीजै मोल॥
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere