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बखना

संत कवि और गायक। संत दादूदयाल के प्रधान शिष्यों में से एक। सांप्रदायिक सद्भाव के प्रचारक।

संत कवि और गायक। संत दादूदयाल के प्रधान शिष्यों में से एक। सांप्रदायिक सद्भाव के प्रचारक।

बखना के दोहे

“वखना” बांणी सो भली, जा बांणी में राम।

बकणा सुणनां वोलणां, राम बिना बेकांम॥

कीड़ी कुंजर सूँ लटै, गाइ सिंघ कै संग।

“बखना” भजन प्रताप थैं, निवाला मवलौ संग॥

बन मैं होती केतकी, जरी जु काहूं दंगि।

भँवर प्रीति कै कारणैं, भसम चढावत अंगि॥

हरि रस महंगा मोल कौ, 'बखना' लियौ जाइ।

तन मन जोबन शीश दे सोई पीवौ आइ॥

'बखना' मनका बहुत रंग, पल-पल माहैं होइ।

एक रंग मैं रहैगा, सो जन बिरला कोइ॥

पहली था सौ अब नहीं, अब सौ पछैं थाइ।

हरि भजि विलम कीजिये, 'बखना' बारौ जाइ॥

दूध मिल्यौ ज्यूं नीर मैं, जल मिसरी इकरूप।

सेवग स्वांमी नांव द्वै, 'बखना' एक सरूप॥

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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