बखना के दोहे
“वखना” बांणी सो भली, जा बांणी में राम।
बकणा सुणनां वोलणां, राम बिना बेकांम॥
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कीड़ी कुंजर सूँ लटै, गाइ सिंघ कै संग।
“बखना” भजन प्रताप थैं, निवाला मवलौ संग॥
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बन मैं होती केतकी, जरी जु काहूं दंगि।
भँवर प्रीति कै कारणैं, भसम चढावत अंगि॥
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हरि रस महंगा मोल कौ, 'बखना' लियौ न जाइ।
तन मन जोबन शीश दे सोई पीवौ आइ॥
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'बखना' मनका बहुत रंग, पल-पल माहैं होइ।
एक रंग मैं रहैगा, सो जन बिरला कोइ॥
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पहली था सौ अब नहीं, अब सौ पछैं न थाइ।
हरि भजि विलम न कीजिये, 'बखना' बारौ जाइ॥
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दूध मिल्यौ ज्यूं नीर मैं, जल मिसरी इकरूप।
सेवग स्वांमी नांव द्वै, 'बखना' एक सरूप॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere