अरुण कमल का परिचय
समकालीन कविता के सुपरिचित कवि अरुण कमल का जन्म 15 फ़रवरी 1954 को बिहार के रोहतास ज़िले के नासरीगंज में हुआ। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद वह आगे की शिक्षा के लिए पटना गए। पटना के साहित्यिक-राजनीतिक वातावरण ने उनके व्यक्तित्व-कृतित्व के विकास में अहम भूमिका निभाई। इसी दौर में वह समकालीन कवियों और साहित्यिक-वैचारिक गतिविधियों के खुले संपर्क में आए।
उनका पहला कविता-संग्रह ‘अपनी केवल धार’ 1980 में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह की ‘अपनी केवल धार’ शीर्षक कविता की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है और उनके परिचय का महत्त्वपूर्ण अंग है। उनकी कविताओं के नए बिंब, बोलचाल की भाषा, खड़ी बोली के लय-छंदों के समावेश ने उनकी एक अलग पहचान निर्मित की है। उनकी कविताएँ मानवीय स्वर में आपबीती से जगबीती की यात्राएँ तय करती नज़र आती हैं। उनमें विषयों की विविधता है जिसके अनुरूप भाषा भी ढलती जाती है। वह आम जीवन-प्रसंगों को कुशलता और सहजता से कविताओं में रूपांतरित करने का हुनर रखते हैं। कविता में उनकी प्रतिबद्धता प्रत्येक शोषित-दलित-वंचित के प्रति प्रकट है।
कविता के साथ ही उन्होंने आलोचना, निबंध और अनुवाद में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
‘अपनी केवल धार’ (1980) ‘सबूत’ (1989), ‘नए इलाक़े में’ (1996), ‘पुतली में संसार’ (2004), ‘मैं वो शंख महाशंख’ (2013) और ‘योगफल’ (2019) उनके कविता-संग्रह हैं। ‘कविता और समय’ तथा ‘गोलमेज़’ उनकी आलोचना-कृति है। इसके अतिरिक्त, साक्षात्कार की एक पुस्तक ‘कथोपकथन’, अंग्रेज़ी में समकालीन भारतीय कविताओं का अनुवाद ‘वायसेज़’ और वियतनामी कवि ‘तो हू’ की कविताओं तथा टिप्पणियों पर एक अनुवाद-पुस्तिका प्रकाशित है। उन्होंने मायकोव्स्की की आत्मकथा का हिंदी अनुवाद भी किया है। उनकी कविताएँ अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई हैं।
‘नए इलाक़े में’ कविता-संग्रह के लिए उन्हें 1998 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।