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गउरिका नंदन त्रिभुवन सार

ga.urika na.ndan tribhuvan saar

नरपति नाल्ह

नरपति नाल्ह

गउरिका नंदन त्रिभुवन सार

नरपति नाल्ह

और अधिकनरपति नाल्ह

    गउरिका नंदन त्रिभुवन सार।

    नाद भेदइ थारइ उदर भंडार।

    एकदंतउ मुखि झलहलइ।

    मूंसाकउ बाहण तिलक सिंदूर।

    कर जोड़ी नरपति भणइ।

    जाणि करि रोहिणी तप्पइ सूर।

    भुवणनइ देषउं रे रबि तलइ॥

    हे गौरीनंदन! हे त्रिभुवन-सार! नाद-भेद तुम्हारे उदर-भंडार में रहता है। तुम्हारे मुख में एक दाँत झलकता है। तुम्हारा वाहन चूहे का है, और तुम्हारा तिलक सिंदूर का है। हाथ जोड़कर नरपति कवि कहता है कि वह तिलक ऐसा लगता है जानो रोहिणी नक्षत्र में सूर्य तप रहा हो। तुम्हारी कृपा से मैं सूर्य के तले स्थित भुवनों को देख रहा हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसलदेव रास (पृष्ठ 85)
    • संपादक : अगरचंद नाहटा
    • रचनाकार : नरपति नाल्ह
    • प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
    • संस्करण : 1959

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