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कालिंदी का धार निरधार हैं अधर, गन

kaali.ndii ka dhaar nirdhaar hai.n adhar, gan

सेनापति

सेनापति

कालिंदी का धार निरधार हैं अधर, गन

सेनापति

कालिंदी का धार निरधार हैं अधर, गन

अलि के धरत जा निकाई के लेस हैं।

जीते अहिराज, खंडि डारे हैं सिखंडि, घन,

इंद्रनील कीरति कराई नाहिं सहैं।।

एड़िन लगत सेना हिय के हरष-कर,

देखत हरत रति कंत के कलेस हैंय़

चीकने, सघन, अँधियारे तैं अधिक कारे,

लसत लछारे, सटकारे, तेरे केस हैं।।

कवि कहता है कि यमुना का जल काला है। यमुना की धार निश्चित जगह पर ही प्रवाहित होती रहती है। भौंरो के समूह की सुंदरता की तुलना तेरे केशों से बिलकुल नहीं है, भौंरे इतने सुंदर नहीं हैं। तेरे केशों ने शेषनाग तथा शिखा धारण करने वाले मुर्गा, मोर आदि को भी पीछे छोड़ दिया है। वे भी तेरे केशों से तुच्छ हैं। तुम्हारे केशों के आगे बादलों और इन्द्र की नीलमणि की तुलना भी तुच्छ है, अर्थात उनकी वैसी कीर्ति नहीं है जैसी तेरे केशों की है। तेरे केश इतने लंबे हैं कि वे तेरी एड़ियों तक पहुँचते हैं। वे देखने में हृदय में हर्ष उत्पन्न करने वाले हैं। वे अपनी सुंदरता से उसी प्रकार आकृष्ट कर लेते हैं जैसे कि सौंदर्य का उपमान कामदेव आकृष्ट करता है। तेरे केश चिकने, घने हैं और अंधकार से भी अधिक काले हैं। वे लच्छेदार, लंबे, सीधे केश बहुत सुंदर प्रतीत होते हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : कवित्त रत्नाकर
  • रचनाकार : सेनापति
  • प्रकाशन : हिंदी परिषद् प्रकाशक, प्रयाग
  • संस्करण : 1971

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