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पुकार

pukar

कृष्णमोहन झा

यदि ठीक से पुकारो

तो चीज़ें फिर सकती हैं तुम्हारे पास

यह जो अवकाश

तुम्हारे विगत और वर्तमान के बीच

एक मरुस्थल-सा फैला हुआ है

(तुम्हारे विस्मरण से

तुम्हारा आत्म जो इस तरह मैला हुआ है)

वह कुछ और नहीं

शब्द और अर्थ के बीच का फ़ासला है केवल

विकलता के गहनतम क्षणों में जिसे

एक आरक्त पुकार से किया जा सकता है तय

शर्त सिर्फ़ यह है

कि उसे

आकांक्षा के अंतिम छोर पर जाकर पुकारा जाए

एक दिन

जब मैं अपनी भाषा के वन में

खोए हुए एक शब्द के लिए भटक रहा था

यहाँ से

वहाँ

और सोच नहीं पा रहा था कि जाऊँ कहाँ

कि अचानक

मेरी काया के असंख्य रंध्रों से मुझे फोड़ती हुई

फ़व्वारे की तरह एक पुकार निकली—

जीतपुर!

और मैंने पाया कि अर्थ से डबडबाया हुआ

पके जामुन की तरह भीगा हुआ एक शब्द

अपने डैने फैलाए हुए

मेरी जिह्वा पर उतर आया है…

बल्कि एक और वाक़या है

जब शहर से मैं

छोड़े गए तीर-सा लौट रहा था अपने घर

और भरी हुई स्मृतियों के साथ

सूखी नदी पार कर रहा था

अपनी आँखें बंद करते हुए मैंने तब

मन ही मन ज़ोर से पुकारा बिछुड़े हुए दोस्तों के नाम

कि रेत में खोए हुए जिए हुए क़िस्से तमाम

नाव की चोट बनकर

मेरे घुटनों में कचकने लगे

और मैंने देखा—

धूल उड़ाते शोर मचाते

चालीस बरस पुराने बच्चों को अपने साथ

दौड़कर अपनी ही तरफ़ आते हुए…

अपने अनुभव से जानता हूँ मैं

कि जिस तरह लोग

सिर्फ़ दरवाज़े पर होने वाली दस्तक को नहीं

ख़ुद अपनी आवाज़ को भी अनसुना कर देते हैं

चीज़ें उस तरह सुनना बंद नहीं करतीं

बल्कि वे

हमारी विस्मृति की ओट में बैठी हुईं

हर सच्ची पुकार के लिए उत्कंठित रहती हैं

उनकी अपेक्षा हमसे अगर कुछ है

तो वह यह

कि जब भी पुकारा जाए उन्हें

सही वक़्त पर सही नाम से पुकारा जाए

एक अदृश्य हाथ से भयभीत

रात के दड़बे में छटपटाता हुआ मुर्ग़ा

जब ओस से भीगी हुई धरती को पुकारता है

तो अगले दिन के शोरबे और स्वाद को निरस्त करता हुआ

एक विस्फोट की तरह प्रकट होता है सूर्य

जब कुत्ते की जीभ से

टप्-टप् चू रहा होता है दुपहर का बुख़ार

तब फटे होंठ सूखे कंठ और सूनी आँखों की पुकार पर

वृक्षों को हहराती पत्तों की क़ालीन बिछाती धूल की पतंग उड़ाती हुई

एक शानदार जादूगरनी की तरह प्रकट होती है हवा

जब दुःख में आकंठ डूबा रहता है तन-मन

जब ख़ुद जीना बन जाता

मृत्यु का तर्पण

तब एक धधकती पुकार ही फिर से संभव करती है वह क्षण

जब जीने का मक़सद

मरने के कारण में मिल जाता है

यद्यपि मुझे पता है

कि अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए

फ़िलहाल कुछ भी नहीं है मेरे पास

लेकिन मेरे अंतःकरण के जल में झिलमिलाता है

एक छोटा-सा विश्वास

कि जिन्हें हम कहते हैं चीज़ें

और जिनके प्रभामय स्पर्श के लिए मर-मर कर जीते हैं

पुकार हैं वे—

उत्कटता के सघनतम क्षणों में

हमारे रक्त से पैदा हुए असाध्य अर्थों की पुकार

और जिसे हम ईश्वर के नाम से पुकारते हैं बार-बार

वस्तुतः इन्हीं पुकारों का एक विराट समुच्चय है वह

जिसके सुमिरन के लिए लिखी जाती हैं कविताएँ

जिसके आवाहन के लिए किया जाता है प्रेम

जिसे पाने के लिए प्राण दिए जाते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : कृष्णमोहन झा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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