अंतिम इच्छा जैसा कुछ भी नहीं है जीवन में
antim ichha jaisa kuch bhi nahin hai jiwan mein
दिनेश कुशवाह
Dinesh Kushwah
अंतिम इच्छा जैसा कुछ भी नहीं है जीवन में
antim ichha jaisa kuch bhi nahin hai jiwan mein
Dinesh Kushwah
दिनेश कुशवाह
और अधिकदिनेश कुशवाह
जब हमें कुछ खोया-खोया-सा लगता है
और पता नहीं चलता कि
क्या खो गया है
तो वे दिन जो बीत गए
दिल की देहरी पर
दस्तक दे रहे होते हैं।
वे दिन जो बीत गए
लगता है बीते नहीं
कहीं और चले गए
बहुत सारे अनन्यों की तरह
और अभी रह रहे हैं
इसी देश काल में।
जो बीत गया इस जीवन में
उसे एक बार और
छूने के लिए तरसते रहते हैं हम।
बीते हुए कल की न जाने
कितनी चीज़ें हैं जिन्हें
हम पाना चाहते हैं उसी रूप में
बार-बार
नहीं तो सिर्फ़ एक बार और।
ललकते रहते हैं
उन्हें पाने के लिए हम
मरने से पहले
अंतिम इच्छा की तरह
और अंतिम इच्छा जैसा
कुछ भी नहीं है जीवन में।
- पुस्तक : इतिहास में अभागे (पृष्ठ 34)
- रचनाकार : दिनेश कुशवाह
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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