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ईर्ष्या

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चंदन सिंह

चंदन सिंह

ईर्ष्या

चंदन सिंह

और अधिकचंदन सिंह

    वर्षों बाद चली है ऐसी कड़ाके की शीतलहरी

    शहर का सारा लोहा

    उसकी तरफ़ हो चुका है

    दरवाज़े पर लगी साँकल का लोहा

    और धमनियों में दौड़ने वाले ख़ून का लोहा तक

    हर रोज़ कुछ और नीचे गिर जाता है

    पारा

    गुलबंद से नीचे दस्तानों से नीचे

    जुराबों से नीचे

    लोग मौसम विभाग से नहीं

    शहर के सबसे अधिक बूढ़ों से पूछते है :

    “बाबा, पिछली बार कब चली थी ऐसी कड़ाके की शीतलहरी?”

    बूढ़े

    याद करने की कोशिश करते हैं तो स्मृतियाँ

    ठंड से बलग़म बनकर कहीं

    जकड़ जाती हैं

    खाँसते हैं बूढ़े लगातार खाँसते हैं

    अखरती नहीं पर उनके गले में खाँसी उसे हम

    उनके गले में लिपटी कंठी जैसी ही कोई चीज़

    समझ लेते हैं

    याद कर पाते बूढ़े तो वे क्या याद करते?

    इस शीतलहरी से होड़ लेती कोई दूसरी शीतलहरी?

    या वे याद करते उस स्त्री को

    चूल्हा बुझाने के बाद भी बची रहती थी जिसके पास इतनी आँच

    कि जिस पर अदहन की तरह उबाल सकती थी वह ठिठुरता रक्त

    या वे याद करते

    देह में साँप के ज़हर की तरह पसरते शीत को चूसकर

    निकाल देने वाले किसी चुंबन को

    विषुवत रेखा की तरह आत्मा को चारों ओर से लपेट लेने वाले

    किसी मित्र के गरम आलिंगन को

    या उस हृदय को याद करते वे

    इन्हें देखते ही जो इतनी ज़ोर से धड़कता था

    कि झड़ जाती थी उस पर जमी सारी राख

    अग्नि की पूरी नग्नता के साथ दहक उठता था जो

    बूढ़े क्या याद करते इस शीतलहरी में?

    क्या-क्या याद करते?

    बढ़ती ही जा रही है ठंड

    सुन्न होती जा रही हैं शहर की सड़कें और गलियाँ

    बातें करते साँसें लेते

    अपनी ही देह की दुर्लभ ऊष्मा को भाप बन उड़ता देख

    आदमी को होता है मोह झट

    अपनी अँगुलियाँ ही सेंक लेता है वह उस पर

    इस समय रौनक़ बाज़ारों में नहीं

    शहर के श्मशान में है

    अचानक कम होने लगे हैं शहर में बूढ़े

    बूढ़ों के लिए दहाड़ मारकर विलाप नहीं

    अगर भीतर कहीं बनता भी है उनके लिए कोई आँसू

    तो अक्सर बाहर ठंडी हवाओं में आते ही

    खो देता है वह नमी

    “अच्छा हुआ ईश्वर ने उठा लिया

    इधर बहुत तकलीफ़ में थे एक तरह से लोथ ही हो गए थे

    बिछावन पर ही...” हम कहते हैं

    और गाजे-बाजे के साथ पैसे लुटाते उन्हें

    श्मशान ले जाते हैं

    इस कड़कती शीतलहरी में

    धधकती हैं चिताएँ जलती हैं बूढ़ों की लाशें

    और मुर्दा फूँकने आए ठिठुरते जीवित जनों को

    प्रज्वलित चिताओं पर लेटे बूढ़ों से

    होती है ईर्ष्या

    इस शीतलहरी में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंदन सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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