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वास्तव में अवास्तविक हूँ

wastaw mein awastawik hoon

नवीन सागर

नवीन सागर

वास्तव में अवास्तविक हूँ

नवीन सागर

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    जहाँ से शुरू हुआ हूँ

    वहाँ से पहले से है मेरी शुरुआत

    जहाँ हुआ हूँ ख़त्म

    वहाँ से आगे चला गया है मेरा सिलसिला

    जीवन के विभ्रम की धुँधली याद है

    जीवन भूला हुआ अनुक्रम

    दोहराता हूँ

    भीतर जाता हूँ बाहर

    मेरी परछाईं फैलती है

    धरती से आसमान तक मेरा आभास है

    या सृष्टि मेरा रहस्य खोजती है

    भीतर

    भटक जाता हूँ तो मैं

    तारों में छिटक जाता हूँ

    मैं

    अवास्तविक हूँ

    वास्तव में अवास्तविक हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 42)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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