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उत्सवधर्मिता

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नरेश चंद्रकर

नरेश चंद्रकर

उत्सवधर्मिता

नरेश चंद्रकर

और अधिकनरेश चंद्रकर

    धड़ सिर हाथ सूँड़ सब

    विच्छिन्न पड़े हैं देव-प्रतिमा के

    सब कुछ विखंडित है

    आकार देने वाले हाथ निमग्न हैं अभी मिट्टी, पानी, रंग में

    कुछ भी पूजनीय आराध्य पुनीत पावन सुगंधित जगमग नहीं

    हम चलें शिल्पी के घर से बाहर

    पंडाल स्पीकर और रोशनी के इंतज़ाम के बाद आएँ

    चलें यहाँ से बाहर

    ग़ुर्बत की ज़िंदगी और बदहाल गणेश जी को क्या देखना!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नरेश चंद्रकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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