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त्रासदी और अमरता

trasadi aur amarta

अनुराग अनंत

अनुराग अनंत

त्रासदी और अमरता

अनुराग अनंत

और अधिकअनुराग अनंत

    तुम्हारी स्मृति को आग की तरह बरतते हुए

    मैंने कविताओं को घर की तरह बरता

    उन दिनों रहने के लिए इसके अलावा

    और क्या ही जगह थी

    उदासी की वजह तलाशते हुए

    मैंने जब टटोला था अपने भीतर का एक अँधेरा कोना

    वहाँ मिली थी तुम्हारी बहुत सारी अनकही बातें

    और मेरे एक पाँव की चप्पल

    दूसरी शायद तुम्हारे भीतर के अँधेरे में गुम हो कहीं

    रेलगाड़ियों की पटरियों पर खड़े खड़े

    मैं तुम्हारी बालकनी पर सूखता रहा हूँ

    तुम्हारी छत पर पड़ती धूप के टुकड़े-सा

    उतरता हुआ अपने ही मन में

    तुम्हारी आख़िरी बात अभी भी मेरा रस्ता देखती है

    मुझे नहीं मालूम वह मुझे

    गले लगाएगी

    या

    मेरा सिर उतार कर

    चली जाएगी चप्पल चटकाते हुए

    किसी और ही ग्रह पर

    तुमसे ज़्यादा मैं तुम्हारी आख़िरी बात का अपराधी हूँ

    तुम्हारी आख़िरी बात

    जिसमें तुमने बस इतना कहा था

    प्रेम मनुष्य को जीवन भर मारता है

    और फिर अंत में अमर कर देता है

    मुझे दुःख बस इस बात का है

    कि मैं जानता हूँ

    अमरता मनुष्य के हिस्से आने वाली सबसे बड़ी त्रासदी है

    और मैं इस त्रासदी के हिस्से चुका हूँ

    अब अमरता मेरे हिस्से आएगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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