हमने कहाँ की थी ऐसे दिनों की कल्पना
hamne kahan ki thi aise dinon ki kalpana
स्वप्निल श्रीवास्तव
Swapnil Shrivastava
हमने कहाँ की थी ऐसे दिनों की कल्पना
hamne kahan ki thi aise dinon ki kalpana
Swapnil Shrivastava
स्वप्निल श्रीवास्तव
और अधिकस्वप्निल श्रीवास्तव
हमने कहाँ की थी ऐसे दिनों की कल्पना
जब हम अपने अकेलेपन में क़ैद हो जाएँगे
घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं होगी
सड़कें शोकगीत की तरह उदास दिखेंगी
गलियों में नहीं होगा बच्चों का कोलाहल
हमारे हाथ एक दूसरे को छूने के लिए तरसेंगे
गले मिलने की क्रियाएँ स्थगित हो जाएँगी
हमारी सारी योजनाएँ और गतिविधियाँ यकायक थम जाएँगी
नींद में ही रह जाएँगे सपने
ऐसे दारुण समय में सर्वाधिक बाधित होता है प्रेम
वह रुका रहता है और उसे व्यक्त होने के अवसर नहीं मिलते
जिन राष्ट्राध्यक्षों के नाम से काँपती थी यह दुनिया
वे अपनी पनाहगाहों में चूहों की तरह छिपे हुए हैं
इबादतगाहों से फ़रार हो चुका है ईश्वर
और धर्माचार्य वानप्रस्थ की शरण में चले गए हैं
बस हमारे पास बचे हुए हैं शब्द
जिनके भीतर हम साँस ले रहे हैं।
- रचनाकार : स्वप्निल श्रीवास्तव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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