Font by Mehr Nastaliq Web

मैं एक बंधक विद्रोही के स्वप्न में हूँ

main ek bandhak widrohi ke swapn mein hoon

उस्मान ख़ान

उस्मान ख़ान

मैं एक बंधक विद्रोही के स्वप्न में हूँ

उस्मान ख़ान

और अधिकउस्मान ख़ान

    [1]

    यह एक स्वप्न है, एक महामायामय मज़बूत उत्तेजित यातनागृह है,

    निशाचर-क्रीडा बाहर, बंधक क्लांत, सतर्क, स्व-निमग्न है, निस्पृह है।

    [2]

    वन-प्रांतर हूँकते, सियाह होती एक-एक तस्वीर, सँवलाती एक-एक पीर,

    श्वास-प्रश्वास, लोहे के बंधनों के स्वर, पीड़ा-विद्ध-चेतस-सिद्ध-शरीर।

    [3]

    संपूर्ण होती स्मृति, मनन की नोक तीखी, भीतर करती स्थिर रक्त-चाप,

    लावा नसों में बहता, और कभी नदी का किनारा दिखता, चेहरे पर ताप।

    [4]

    विचार-शृंखला बनती जाती, पीड़ा खोती जाती, अनुभव होते और कठोर,

    आशा जागती, अँधेरे का सीना भेदकर, अब कि तब आती ही है भोर।

    [5]

    यह दुख-सुख, नित नई उम्र, यह एक ही जनम में कई जनमों की व्यवस्था,

    नित नए संघर्ष, नई जीत-हार, नए रंग, नया गुणा-भाग, नई जीवन-अवस्था।

    [6]

    जीवन स्वतःस्फूर्त-घृणा और प्रेम, हिंसा और शांति-बहुरूप अग्नि-प्रेरक वह

    आशा-निराशा की गर्तों में, एकांत और सभा में, विषयासक्त, ख़ूबसूरत और दुसह।

    [7]

    सभ्यता की चीख़ें निकलती हैं कई सतहें पार करती, पृथ्वी के क्रोड से, अचानक,

    जैसे किसी प्रसूति-गृह के उजाले में चीख़ती है कोई तरुणी जी तोड़ के, अचानक।

    [8]

    लेकिन सुलगते इस भव्य-राज-दरबार में, यह कौन स्वर्ण-आभूषित सिंहासन-आरूढ़,

    यह कौन वीभत्स-संसार रचता भीतर ही भीतर? राज्य-रहस्य! क्या वह गूढ़ या मैं मूढ़!

    [9]

    मैं हर विस्तार से चौंकता, हर सूक्ष्मता से हैरान, उसके भीतर एक दर्द-सा क़ैद हूँ,

    मैं उसके बाहर उसे देख सकता हूँ, उसके मन की किसी एक सतह का एक भेद हूँ।

    [10]

    ढोंग-धतूरे के पार, रहस्यों का अंत हुआ, आत्मा के परखच्चे उड़े, परम-आत्मा भी भस्म हुई,

    उसने फ़ोकस देखा, सेकंड का काँटा, फिर समय या जीवन टटोलने के लिए अपनी नब्ज़ छुई।

    [11]

    इस जगह या उस जगह, इस या उस कारण से, इस पल या उस पल, जीवन का अंत निश्चित है,

    पर जंगलों में अकेले भटकते अपनी जड़ों को छूना इस पल सुखद है, मन जगमग है, विस्मित है।

    [12]

    सफ़ेद फूल हैं विशालकाय पवनचक्की के साए में, मई की धूप में खिले हुए पठार पर, शांत

    इस पल और उस पल के बीच वह कि दर्द, फ़्रेसनेल लेंटर्न उसकी आँखों की किनार पर, शांत।

    [13]

    महाकार, टेढ़ी-मेढ़ी, आसमान की ओर बढ़ती, लोहा, पत्थर और काँच खाती इमारतें,

    सूरज की किरणें अपना रस्ता बनाती हैं इन गलियों में, बचते हुए बहुत ध्यान से।

    [14]

    पानी ज़हरीला है, हवा ज़हरीली, ग़ुलाम ख़ुश हैं, जंतर-मंतर, चक्रव्यूह है, तम-संजाल है,

    संत हैं, बेरोज़गार हैं, वेश्याएँ हैं, मज़दूर हैं, मालकिन और उसका पति है, जंजाल है।

    [15]

    इन गुफाओं में, इंटरनेटधारी सीलन छाए तंग कमरों में, अकेली व्याकुल विकृतियाँ मँडराती हैं,

    कभी साइबर स्पेस में, कभी रसोई में, कभी बाथरूम में, कभी छत पर आती हैं–जाती हैं।

    [16]

    हँसी और चीख़ें–पड़ोस में होती पार्टी पर सोचती कोई रोशनदान को घूरती है देर तक ग़ुस्से में,

    अस्तित्त्व या बेवफ़ाई पर सोचता कोई करता है हस्तमैथुन ग्लानि में, हताशा में, अपलक ग़ुस्से में।

    [17]

    शरीर पर चिपकती जाती धूल और पसीने की तरह, चमकती शीशेदार क्रूर-वीभत्स बनावटें दिन-भर,

    वे असंख्य अकेले अजनबी शहर में भटकते, उम्मीद का ग़ुब्बारा रखे अनिश्चित भविष्य की नोंक पर।

    [18]

    वे रोटी और इज़्ज़त की तलाश में, वे बच्चे, उन्मादी जुलूस के निर्माता, वे ज़माने को असह्य

    भूखे और अपमानित, भ्रमित, कुंठित, नागरिक, अशिक्षित-अर्धशिक्षित, सरकारों के लिए अवह्य।

    [19]

    मैं उनके बीच, उनका, वे मेरे जन्म का कारण, मेरे दुख का निवारण करने वाले, मेरे अपने,

    वे अकेलेपन से घबराए हुए हैं, वे सोचते अन्याय के अंत के बारे में, वे निराले, मेरे अपने।

    [20]

    सोचता हूँ, ऐसी स्थितियों के मध्य, इन संघर्षों बीच, वह सहज महासुख कैसे हुआ जाग्रत,

    वह ज़िंदगी का आकर्षण तीखा, वह आशा भरा आकाश, वह विजय या मृत्यु का एकव्रत।

    [21]

    यह निरंतर तेज़ होता संघर्ष, लगातार रास्ता उभरता, अँधेरे के आवर्त तोड़ता मन—

    प्रकाशमय होता, सत्य और साहस का धारक, अमीरों का खटका, ग़रीबों का हमवतन।

    [22]

    महासंपत्तिशालियों के झगड़ों में अन्याय, आतंक और अविश्वास की दुनिया बनती जाती है,

    पृथ्वी का विनाश रोकने में संपत्तिहीनों की प्रार्थना विफल और हास्यास्पद नज़र आती है।

    [23]

    ऐसे में, कोई ग़ुलाम बाग़ी हो जाता है, गिरोह बनाता है, हमले करता है मालिकों पर ही,

    वह जो सितारे-सी चमकती है एक आवाज़ संगीनों के साये में बदले और बदलाव की।

    [24]

    वह जो एक मारी गई थी, जिसने अन्याय के समक्ष समर्पण की राह नहीं ली थी,

    वह विद्रोह की प्रतीक थी, उसकी हत्या चुनौती थी, ख़ुबसूरती को खौफ़ की चुनौती।

    [25]

    मैंने वह चुनौती स्वीकार की, आगे बढ़कर, बेझिझक मैंने ख़ुद को आग में झोंक दिया,

    मैंने शक्तिशालियों की क्रूरता के विरुद्ध शक्तिहीन के संघर्ष का पक्ष आत्मसात किया।

    [26]

    इस वन में अकेले हिंस्र-पशुओं के मध्य मैं दृढ़ हूँ अपने वचन पर, निश्चित हूँ,

    ख़ुश हूँ जीवन की संभावनाओं से, घायल हूँ—लेकिन अविजित हूँ, अशंकित हूँ।

    [27]

    मौन अपनी स्मृतियाँ स्निग्ध करता, अपना पक्ष स्पष्ट, अपने तर्क तेज़,

    अपनी विकृतियों का विश्लेषक-संश्लेषक, अपनी बनाई दुनिया का रंगरेज़।

    [28]

    दुखती आँखों को मीचता, अपनी बेड़ियों को माथे से छूता, वह मुस्कुराता है,

    जैसे आने वाले तमाम वक़्तों से जाँविदानी का आशीर्वाद पाता है।

    [29]

    वह किसी की बात सुनता है, गुनता है, प्यार से किसी के सलोने हाथ चुमता है,

    यातनागृह में पहुँची नई सामग्रियों से अनजान, वह सड़क पर आवारा घूमता है।

    [30]

    रात की गहराई में परिताप चुप, संताप चुप, सैनिकों की पद-चाप चुप,

    अँधेरा घूप, अँध-कूप जैसे—पर हँसी, बातचीत, सड़क और कड़क धूप।

    [31]

    क्या करते हैं विद्रोह के सहभागी? क्या मुर्दा ठंडक से भर जाएगा यह देश-काल,

    क्या आग और भड़की? नए संघर्ष की दिशा क्या? नई स्थितियों के नए सवाल।

    [32]

    उसने विद्रोह किया है, दर्द सहा है, सच के लिए सूली को स्वीकार किया है,

    उसने बिजली के पहाड़ों पर सपने बोए हैं, उसने विद्रोहियों को तैयार किया है।

    [33]

    वह दुनिया को बदल देना चाहता है, किसी भी तरह से, उत्पीड़ितों के पक्ष में,

    वह इस अत्याधुनिक यातनागृह में, आदिम सीली गुफा में, इलेक्ट्रिक कक्ष में।

    [34]

    वह अपनी हर साँस, अपनी सारी क्षमता, युद्ध की आग में डालता जाता है,

    वह, क्रूरता और घृणा पर ज्ञान और प्रेम की जीत में, विश्वास जताता है।

    [35]

    अपनी मृत्यु पर नहीं, अपने जीवन और सपनों पर, धूप-छाँव की सड़क पर,

    वह सोचता है अलग-अलग सीरे पकड़कर, ज़ात, धर्म, भाषा, मनुष्य, रोबोट, ईश्वर।

    [36]

    वे कौन जो हर सुबह, हर रात, दिल कड़ा कर, चौराहे पर ख़ुद का सौदा करते हैं,

    वे कौन, जो अक्सर भूखे सो जाते हैं, वे कौन, जो अस्पतालों में बेइलाज मरते हैं।

    [37]

    फिर वे कौन, मेहनत के लुटेरे, मुनाफ़ाख़ोर, ज़माने के ख़ुदा, ईश्वर के अवतार,

    वे कौन, अय्याश, हिंसक, महाक्रूर, जिनके लिए विनोद हत्या और बलात्कार।

    [38]

    वे कौन, भयभीत-शंकित, जो सपने देखने वालों की आँखें फोड़ देते हैं,

    वे आत्ममुग्ध, तानाशाह, जो अलग सोचने वालों के सिर तोड़ देते हैं।

    [39]

    इस घमासान युद्ध में, बाहर-भीतर के संघर्ष में, अपना पक्ष तैयार करना,

    ज़िंदगी को ख़ुबसूरत बनाना कितना कठिन है, कितना कठिन है प्यार करना।

    [40]

    पर डरकर, अपमान सहकर जीने से मौत बेहतर, जो जैसी चुने ज़िंदगी, वैसी जीए!

    जैसे बहती है नदी, जैसे उड़ते हैं पंछी, जैसे हँसते हैं बच्चे, जैसे जलते हैं दीए।

    [41]

    अँधेरा ओढ़े बैठे सन्नाटे में, बूटों की बढ़ती आहटें सुनकर, वह सतर्क हो जाता है,

    आँखें खोल दीवारें देखता है, बेड़ियों को अपने माथे से लगाता है, ख़ुद को उठाता है।

    [42]

    मैं हूँ, वह है, बूटों की आवाज़ें हैं—हत्या, बलात्कार, प्रतिरोध और शहादत के दरमियान,

    इस इलेक्ट्रिक कक्ष में, हिंस्र-पशुओं के सामने, मैं नारा उठाता हूँ इंक़लाब का—सीना तान—

    [43]

    वह उठता है, कुछ देर फ़र्श और सलाख़ों पर ख़ून के धब्बे देखता है, बैठ जाता है,

    शायद सपना ही था, बेड़ियाँ हामी भरती हैं, फ़िलहाल, कोई इधर नहीं आता है।

    [44]

    तीखे उजाले में पिघलते हैं हिंस्र-पशु मेरी प्रतीक्षा में, बाक़ी बस सड़क-सी भीत है,

    कोई पीड़ा अपने बंधन तोड़ देती है, मूर्छा का अँधेरा है, मुक्ति की अपनी रीत है।

    [45]

    शायद सपना ही था, वह अकेला इस प्रकाशमय यातनागृह में शृंखला-बद्ध निढाल पड़ा है,

    वह अकेला अपने पीड़ा-विद्ध-चेतस-सिद्ध शरीर को पहचानता, चिलकते आईने में जड़ा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उस्मान ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए