प्रस्तुत प्रस्तुति में
एक बरगद के आख्यान की सूक्ष्म-सी व्याख्या और
बहुत-सी अस्पष्टताओं के साथ आगे बढ़ा अन्य कुछ भी है
बात है यह एक मोटे तने वाले छायादार विशाल बरगद की
इस पर सभी तरह के पंछी बैठे चहचहाते थे
इसकी दाढ़ी तंत्र की शिराओं पर झूलते थे बच्चे
बरगद के चारों ओर एक पक्का चबूतरा, मज़बूत
उसका पृष्ठ व्यापक विस्तार लिए
जहाँ बैठ हुक़्क़ा गुड़गुड़ाते बुज़ुर्ग
राजनैतिक चेतनशीलता जन-जन को समझाते
मानव की कहानी में सौंदर्य को बढ़ाते
बरगद के आख्यान की सूक्ष्म-सी व्याख्या में
हुक़्के की गुड़गुड़ाहट एक विशेष है
अब बात कुछ इससे आगे की
जर्जर हो चुका है चबूतरा
कहा गया है कि बरगद पर भूतनी का वास
एक कथन में ‘बरगद पर भूतनी’ को ख़ास माना गया
उसके लिए भी कई व्याख्याओं को बनाया गया
कुछ में तो इस तरह कि
सब रहस्यमय बन जाए
और वास्तविक यथार्थ में एक नई दिशा का प्रचलन चला
रात को बरगद के पास कोई नहीं जाएगा
परिणामस्वरूप दिन में भी सूना
बरगद और जर्जर चबूतरा
उससे दूर लोगों के मकान
स्कूल में बच्चे
पाठ में संधि के प्रकार व विच्छेद
समय आया किसी आख्यान की व्याख्या को पलट देने का
और बरगद वाली पृथ्वी-जगह उल्टी पलट गई
यानी बरगद और चबूतरा पाताल में
धरती के ऊपर पाताल का लावा उबलता
पास की पहाड़ी पर दानव
एक क्रियारूप में दानव लावा में पत्थर फेंकता
इस वहशी क्रिया के विशेष के तौर पर
राहगुज़र आदम अपने ऊपर आ पड़े लावा से झुलसता
दरअसल मनुज का सर्वनाम है यह दानव
यह बात पद-परिचय में अलग रूप ले सकती है
‘आदम’ का लावा से झुलसना और
‘मनुज’ के सर्वनाम के तौर पर ‘दानव’ का प्रयोग
किसी ख़ास प्रायोजन का द्योतक तो नहीं?
वैसे भी क्यों न वाक्य पर विचार के अगले रूप में
व्याख्या की जटिलता को बढ़ने दें।
अंत में एक और दरअसल का दख़ल
समसामायिक आन बना है
कुछ उग्र नज़रों के कई कारक रूप
आख्यान की व्याख्या की क़लम तोड़ने की फ़िराक़ में हैं।
- रचनाकार : शंभु यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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