पद्रो हेनरीकेज़ उरेआँ का सपना
padro henrikez urean ka sapna
1946 के एक दिन, भोर के वक़्त, पेद्रो हेनरीकेज़ उरेआँ ने जो सपना देखा,
ख़ासे विलक्षण रूप में, उसमें बिंब नहीं थे, बल्कि धीरे-धीरे बोले गए ख़ास
तरह के शब्द थे। उन शब्दों को बोलने वाली आवाज़ उसकी ख़ुद की न थी,
लेकिन उससे मिलती हुई थी। उस आवाज़ का स्वर, कथन में अंतर्निहित
शोकपूर्ण संभावनाओं के बावजूद, निर्वैयक्तिक और नीरस था। सपने के
दौरान, जो छोटा ही था, पेद्रो को पता चला कि वह अपने कमरे में, अपनी
बीवी की बग़ल में सोया हुआ है। सपने ने, अँधेरे में, उससे कहा :
कुछेक रात पहले, काले कॉर्बोदा के एक नुक्कड़ पर, तुमने बोर्ख़ेस के साथ,
सेविले की एक अज्ञात आत्मा की प्रार्थना पर चर्चा की थी। 'ओ मृत्यु, नीरवता
के क्षणों में आना, क्योंकि दीवारघड़ी की सुइयों से तुझे भला क्या लेना-देना!'
तुम दोनों को शक हुआ कि यह किसी लैटिन-पाठ की जान-बूझकर की गई
प्रतिध्वनि है, क्योंकि ये ध्वन्यंतरित शब्द एक विशेष कालावधि की प्रकृति के
अनुरूप हैं, शब्दों और विचारों की चौर्य-वृत्ति की हमारी अपनी धारणाओं से
सर्वथा परे, निस्संदेह व्यावहारिक के मुक़ाबले कम साहित्यिक। जो बात तुमने
नहीं सोची, जो बात तुम नहीं सोच पाए, यह है कि वह एक भविष्यवाणी थी।
चंदेक घंटों में, यूनिवर्सिटी ऑफ़ ल 'प्लात में अपनी क्लास लेने के लिए,
'कांस्टीट्यूशन स्टेशन' के अंतिम प्लेटफ़ार्म पर तुम भागदौड़ कर रहे होगे, तुम
ट्रेन पकड़ लोगे, रैक पर ब्रीफ़केस रखकर, खिड़की की बग़ल वाली अपनी
सीट ग्रहण कर लोगे। एक आदमी, जिसका नाम तो नहीं जानता, लेकिन चेहरा
पहचानता हूँ, तुमसे कुछ कहेगा। अपनी बीवी और बच्चों से तो तुम पहले ही
विदा ले चुके होगे। यह सपना तुम्हें याद नहीं आएगा, क्योंकि इन घटनाओं की
पूर्ति के लिए, तुम्हारी याददाश्त से उसका उतर जाना ज़रूरी है।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 173)
- रचनाकार : होर्खे लुइस बोर्खेस
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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