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सूर्य

surya

केदारनाथ सिंह

और अधिककेदारनाथ सिंह

    वह रोटी में नमक की तरह प्रवेश करता है

    ताखे पर रखी हुई रात की रोटी

    उसके आने की ख़ुशी में ज़रा-सा उछलती है

    और एक भूखे आदमी की नींद में गिर पड़ती है

    एक बच्चा जगता है

    और घने कोहरे में पिता की चाय के लिए दूध ख़रीदने

    नुक्कड़ की दुकान तक अकेला चला जाता है

    एक पतीली गर्म होने लगती है

    एक चेहरा लाल होना शुरू होता है

    एक ख़ूँख़ार चमक

    तंबाकू के खेतों से उठती है

    और आदमी के ख़ून में टहलने लगती है

    मेरा ख़याल है

    वह आसमान से नहीं

    किसी जानवर की माँद से निकलता है

    और एक लंबी छलाँग के बाद

    किसी गंजे तथा मुस्टंड आदमी के भविष्य में

    ग़ायब हो जाता है

    अकेला

    और शानदार

    वह आदमी के सिर उठाने की

    यातना है

    आदमी का बुख़ार

    आदमी की कुल्हाड़ी

    जिसे वह कंधे पर रखता है

    और जंगल की ओर चल देता है

    मेरी बस्ती के लोगों की दुनिया में

    वह अकेली चीज़ है

    जिस पर भरोसा किया जा सकता है

    सिर्फ़ उस पर रोटी नहीं सेंकी जा सकती!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 46)
    • संपादक : परमानंद श्रीवास्तव
    • रचनाकार : केदारनाथ सिंह
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1985

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