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स्नानघर

snanghar

मनीष यादव

मनीष यादव

स्नानघर

मनीष यादव

और अधिकमनीष यादव

    प्रवेश के पहले क़दम पर

    खुल जाती है हर गाँठ!

    खोखली हँसी को उतार फेंकती है

    उस भाषा के समक्ष

    जिसने नहीं समझा उसके तरल मन का विषाद

    बूँद के पहले स्पर्श से

    उमड़ पड़ता है अनकहे संवादों का सैलाब

    असंतुलित रास्तों के बावजूद

    जैसे नदी उतरती है ढलानों की ओर,

    वैसे ही देह से उतरता है आँखों का अमूल्य द्रव्य।

    अंतत: स्नानघर के भीतर

    'मौन' लील जाता है सब कुछ,

    धो दिए जाते हैं जगह-जगह पड़े सच के दाग़

    और केवल

    मधिम रौशनी से बनती परछाईं को ज्ञात है

    गुनहगारों के नाम॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीष यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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