हम अपने हाथ उठाते हैं
सड़क आकाश चूमने लगती है
हम अपनी नज़रें झुकाते हैं
छतें ज़मीन पर उतर आती हैं
हर दर्द में से
जिसे हम कह नहीं पाते
अखरोट का एक वृक्ष उगता है
और हमारे पीछे रहस्यमय बना रहता है
हर आशा से
जिसे हम अपने हृदय में पोसते हैं
एक तारा उदय होता है
और हमारे ही सामने
हमारी पहुँच के बाहर होता चला जाता है
क्या तुम बंदूक़ की उस आवाज़ को सुनती हो
जो हमारे सिर के इर्द-गिर्द व्याप्त है
क्या तुम बंदूक़ की उस आवाज़ को सुनती हो
जो हमारे चुंबनों की रखवाली करती है?
2
तुम्हारी नज़रों की सड़कों का
कोई अंत नहीं
तुम्हारी आँखों की अबाबीलें
दूर दक्षिण देशों की ओर नहीं उड़तीं
तुम्हारे वक्ष के ऐस्पेन वृक्ष1 से
पत्तियों नहीं झरतीं
तुम्हारे शब्दों के आकाश में
सूर्य अस्त नहीं होता
3
एक दिवस दो हिस्सों में
विभाजित एक ताज़ा सेब है।
मैं तुम्हारी ओर देखता हूँ
तुम मुझे नहीं देख पातीं
हमारे बीच एक अंधा सूर्य है
तुम मुझे पुकारती हो
मैं तुम्हें नहीं सुन पाता
हमारे बीच बहरी हवा है
दुकान की खिड़कियों में
मेरे होंठ तुम्हारी मुस्कान
तलाश रहे हैं।
चौराहों पर हमारे कुचले चुंबन हैं
मैंने तुम्हें अपना हाथ दिया है
लेकिन तुम उसे महसूस नहीं कर पातीं
सूनेपन ने
तुम्हें आलिंगन में बाँध लिया है
चौकोर मैदानों में
तुम्हारा आँसू मेरी आँखें तलाश रहा है।
संध्या समय मेरा दिवस मृतक
तुम्हारे मृतक दिवस से मिलता है
केवल निद्रा में
हम दोनों एक ही राह पर चलते हैं।
4
ये तुम्हारे ही होंठ हैं
जिन्हें मैं तुम्हारी गर्दन को लौटा रहा हूँ
यह मेरी चाँदनी है
जिसे मैं तुम्हारे कंधों से उठा रहा हूँ
अपनी मुलाक़ातों के
अभेद्य जंगल में
हम एक दूसरे को खो चके हैं
मरे हाथों में
तुम्हारे आदम का सेब
उदय और अस्त होता है
तुम्हारे कंठ में
मेरे चक्कर खाते हुए तारे
प्रज्वलित होते और बुझते हैं
अपने बहुत भीतर के
सुनहरे पठारों में
हमने एक दूसरे को पा लिया है
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 191)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : वास्को पोपा
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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