सावन की भरी नदी थी हमारा रास्ता

savan ki bhari nadi thi hamara rasta

अनिल मिश्र

अनिल मिश्र

सावन की भरी नदी थी हमारा रास्ता

अनिल मिश्र

और अधिकअनिल मिश्र

    मेरे पास तुम्हे याद करते हुए वो अधूरी कविता है

    जिसे लिखी थी मैंने कभी उन्ही दिनों

    जब फूलों से पराग लेकर

    मधुमक्खियों की तरह हम शब्द बनाते थे

    भरी हुई हैं जिसमें

    करवटें बदल-बदल कर काटती रातें

    आसमान में थोड़ी दूर उड़ने के बाद

    हवा में ही कटकर गिर जाने वाले पंख हैं

    जब जब कोशिश करता हूँ

    कुछ पंक्तियाँ लिखकर पूरा करने की उसे

    मैंने महसूस किया अंदर उस राख़ की तपन

    जिसमे ज़िंदा थीं आज भी बहुत-सी चिनगारियाँ

    उन दिनों को याद करते हुए मेरे पास

    चुभते हुए काँटे हैं

    बगीचे से चुराए सुर्ख़ गुलाब के

    एक बड़े फूल के साथ-साथ गए थे वो

    क़िस्मत ऐसी कि सुर्ख़ फूल सूखकर स्याह हो गया

    पर काँटे और भी कड़े और नुकीले

    उन्हें ही तुम्हारा प्यार समझते हुए

    मैंने किसी मूर्ति की तरह

    अपने दिल के गर्भ गृह में

    प्रतिष्ठित कर दिया है

    अपनी चखी हुई खटटी-मीठी बेरें

    चढ़ाता हूँ उन पर प्रसाद की तरह

    मेरे पास कच्ची मिट्टी की गागर थी

    और तैरना भी नहीं आता था

    सावन की भरी नदी था हमारा रास्ता

    इसके पहले कि हम किसी किनारे पर पहुँच पाते

    गागर गल गई थी मेरी

    मुझे पता नहीं था कि मैं डूब गया था

    या मिल गया था किसी तिनके का सहारा

    लेकिन वक्त को मैंने हिरन की तरह छलाँगे लगाते

    एक घने जंगल में गुम होते हुए देखा

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिल मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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