जैसे-जैसे जीते हैं हम
हम जीवन के संवाहक हैं
और जब हम संवहन करने में नहीं रहते सफल
जीवन भी हम से नहीं गुज़रता।
यही यौन के रहस्य का एक पक्ष है।
वह आगे बहता रहता है
यौनहीन लोग कुछ भी संप्रेषण नहीं करते।
और अगर जैसे हम काम में हों
हम काम में ही जीवन प्रेषित कर सकते हैं
जीवन, थोड़ा और जीवन हममें पूरा होता रहता है तैयार
और हम जीवन के साथ-साथ ही बहते रहते हैं दिनों से गुज़रते
यहाँ तक कि अगर कोई और सेब का मुरब्बा बना रही है
और आदमी मेज़
अगर प्राण ऊर्जा खीर में जाती है तो खीर बेहतरीन है
बेहतरीन है मेज़
ख़ुश है औरत और ताज़ा जीवन लहरें मार रहा है उसमें
संतुष्ट है आदमी
दो तो वह तुम्हें ही दिया जाएगा
जीवन का यही है सच
पर देना—इतना आसान नहीं है जीवन।
यह अर्थ नहीं कि किसी अपात्र को दे दो या ऐसे को
दो जो जीवित ही मृत है और तुम्हें खा ले
इसका अर्थ है प्राणवत्ता को ख़ाक कर देना
जहाँ वह है ही नहीं
बेशक यह अगर धुले जेबी रुमाल की सफ़ेदी में ही क्यों न हो।
- पुस्तक : डी. एच. लॉरेंस की कविताएँ (पृष्ठ 33)
- रचनाकार : डी. एच. लॉरेंस
- प्रकाशन : समकालीन प्रकाशन, नई दिल्ली
- संस्करण : 1980
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