राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ख़तरा
rashtra ki suraksha ke liye khatra
अयोग्यताओं की अभ्यर्थना का यह समय
महीन लोगों का महिमामंडन कर रहा है
महान लोग अपनी महानताएँ लादे फिर रहे हैं
जो बहुमूल्य हैं, बेमोल बिक रहे हैं
जिनका कोई मोल नहीं है वे अनमोल हो गए हैं
जो जितना रेंग कर चल रहा है
उसका उतना ही क़द है
जो जितना क्रूर है
वो उतना ही गद्गद है
यह समय जेबकतरे के ईमान जैसा समय है
यह घास को बरगद बता सकता है
औरंगज़ेब को सरमद बता सकता है
यह समय क़साई के हाथ की अँगूठी है
आत्मा की पेंदी के नीचे सुलग रही अँगीठी है
भिखारियों के फैले हुए हाथों में लोकतंत्र नहीं गिरता
ये नंगी पीठों पर लाठियों की मार के मानचित्र पर उभरता है
इतनी सी बात जो जान गया
वह जेल में है
इतनी सी बात जो समझ गया
वह रेल में है, खेल में है, पेलमपेल में है
इस समय का कुछ नहीं हो सकता
समय का दलाल हर किसी को बस यही बता रहा है
यह समय निरंकुश है
देश में हर कोई जितना होना चाहिए उतना ख़ुश है
जो परेशान है, बेवजह परेशान है
हमारा देश महान था, हमारा देश महान है
मैं शायद पागल हूँ जो अभी भी आख़िरी लड़ाई के इंतज़ार में अपना लोहा गला रहा हूँ
ठिठुरते हुए समय में सूखे हुए सपनों से काम चला रहा हूँ
चाहनाओं के महोत्सव वाले इस समय में
मैं बस इतना चाहता हूँ
कि कोई बच्चा
खिलखिलाते हुए कह दे कि हम सबकी आत्माएँ नंगी हैं
राजा कोई नहीं है
मात्र एक भ्रम है
जो सिंहासन में पैर पर पैर चढ़ा कर बैठा हुआ है
मेरी इतनी-सी चाहत
मुझे बीच सड़क पर ले आई है
और मैं न चाहते हुए भी क्रांतिकारियों की तरह दिखने लगा हूँ
जबकि मैं अपने घर की बालकनी में बैठे हुए
बेसन की पकौड़ियाँ खाना चाहता हूँ
और यह भी कि सभी को एक अदद बालकनी
एक सुंदर बरसात
और सुकून से बेसन की पकौड़ियाँ खाने का मौक़ा मिल सके
मेरा पागलपन यह आधारभूत बात समझने में बाधा बन रहा है
कि इस महान समय में
किसी भी छोटी-सी छोटी इच्छा के आगे
सबको या सबके लिए लगा देने पर
आप देशद्रोही हो सकते हैं
और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ख़तरा भी।
- रचनाकार : अनुराग अनंत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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