एक ज्योतिषी ने प्रश्न किया: समय का क्या भेद है?
उत्तर मिला:
तुम अपरिमेय, परिमाणातीत समय को मापा करते हो। तुम अपने व्यावहारिक कार्यों
का विभाजन नहीं बल्कि अपनी आत्मा का निर्देशन भी ऋतुओं और घंटों के अनुसार करते
हो।
समय को तुम नदी मानकर उसके तट पर बैठ जाते हो और उसके प्रवाह को देखा
करते हो।
फिर भी कालातीत अंतरवासी को कालातीत जीवन का ज्ञान रहता है।
वह जानता है कि विगत समय आज की स्मृति मात्र है, और आगामी कल आज का स्वप्न।
और वह यह भी जानता है कि जो तुम्हारे अंदर संगीतमय है, वह अब भी उस आदि
क्षण की परिधि में बस रहा है—जिसने आकाश के नक्षत्रों को ब्रह्माण्ड के शून्य में बिखेरा था।
तुममें से कौन है जो यह नहीं जानता कि उसकी प्रेम करने की शक्ति असीम है?
और वह कौन है, जिसे इस बात का ज्ञान नहीं कि प्रेम असीम होते हुए भी उसी के
व्यक्तित्व में केंद्रीभूत है...वह प्रेम जो एक विचार से दूसरे विचार में और एक कार्य से
दूसरे कार्य में गतिमान नहीं होता?
क्या प्रेम की तरह काल भी अविभाज्य और असीम नहीं?
किंतु यदि तुम्हारी कल्पना काल को ऋतुओं में बाँटना ही चाहती है, तो इस रीति से बाँटो
कि प्रत्येक ऋतु अन्य ऋतुओं को अपने आलिंगन में ले ले।
और आज का वर्तमान भूतकाल को आज की स्मृतियों और भविष्य की अभिलाषाओं
से इस तरह बाँध ले कि सब एकरूप हो जाए।
- पुस्तक : मसीहा
- रचनाकार : ख़लील जिब्रान
- प्रकाशन : राजपाल एंड संस
- संस्करण : 2016
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