उदासीन
udasin
वो किसी बात की परवाह नहीं करता। अगर वे उसके घर का
पानी का कनेक्शन काट देते हैं तो वो कहता है, कोई
बात नहीं, जाड़ा आने वाला है।
और अगर वे घंटे भर तक बिजली बंद रखते हैं, तो वो
जम्हाई लेते हुए कहता है, “कोई बात नहीं, सूरज
की रोशनी काफ़ी है।
अगर वे उसकी तनख़्वाह में कटौती की धमकी देते हैं, तो वो
कहता है, कोई बात नहीं, महीने भर तंबाकू और
शराब का इस्तेमाल नहीं करूँगा।
और अगर वे उसे पकड़ कर जेल में धाँध देते हैं, तो वो
कहता है, “कोई बात नहीं, कुछ अरसा मैं अपने में
अकेला रहूँगा, यादों के साथ।
और अगर वे उसे जेल से वापस घर छोड़ जाते हैं, तो वो
कहता है, कोई बात नहीं, अपना ही तो है घर!
एक दिन मैंने तैश में आकर कहा, “कल तुम्हारा गुज़ारा कैसे होगा?
उसने कहा, कल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। मैं ख़याली
पुलाव नहीं पकाता। मैं जो हूँ वही हूँ। कोई चीज़ मुझे
बदल नहीं सकती, जैसे मैं किसी चीज़ को बदल नहीं
सकता। लिहाजा मैं अपने हाल में ख़ुश हूँ।
मैंने उससे कहा, न मैं सिकंदर महान् हूँ, न दायोजेनस1 ।”
उसने कहा, “मगर उदासीनता भी एक फलसफ़ा है...
उम्मीद का एक पहलू।”
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 341)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक सुरेश सलिल, कैथराइन कोहैम
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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