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फेरीवाला

feriwala

अनुवाद : राघु मिश्र

शक्ति महांति

शक्ति महांति

फेरीवाला

शक्ति महांति

और अधिकशक्ति महांति

    बाबू जी, ये चश्मा लो, सपने इससे अच्छे दिखते हैं

    आँखों में समाया डर, पनियारी आँखों में किसी की

    अनचाही छाँव, सब ओझल हो जाएगा इस चश्मे से

    ये घड़ी पहन कर देखो तो, कलाई पर खूब जँचेगी

    इसकी टिक-टिक उस अदृश्य छिपकिली की सच-सच जैसी

    इस घड़ी को पहन कर समय से बाहर भी जा सकते हो

    इसकी सूई से सलीब पर टाँग सकते हो समय को

    ज़रा इस मुखौटे को लगा कर देखो, अरे वाह तुमको

    अब कोई पहचान कर दिखाए, बस इसके पीछे आँखें मूँद लो

    और ख़ुद को कनिष्क समझ लो

    देखो तो, यह क़लम तुम्हारी छाती पर कितनी सुंदर लगेगी

    कोरे काग़ज़ का पन्ना लेकर बैठो और क़लम से उड़ेल दो अपना ख़ून

    स्याही से नहीं बाबू जी, ख़ून से कविता लिखो

    लो, इस रूमाल में आँसू की हर बूँद खिलती है फूल बनकर

    काफ़ी ताज़ा लगती हैं चुंबन की निशानियाँ

    बाँध कर देखो माथे पर, काफ़िर-से लगोगे

    बाबू जी, चाभी की रिंग भी है, दिखाता हूँ

    अपने सारे राज को गूँथ कर झुला देना कमर में उसके

    जो बार-बार पड़ती है तुम्हारे प्रेम में

    या अतीत के उस कैलेंडर पर लटका देना

    जिसकी हर तारीख़ इतिहास है

    जरा इस आईने को देखो तो, तुम्हारा पीछा

    कर रहीं सारी यादें साफ़-साफ़ दिखेंगी

    फ़ोन पर आवेश की तस्वीरों की भीड़ में गुमशुदा

    तुम्हारा उजला चेहरा भी दिख जाएगा इस आईने में

    ओह, कुछ भी पसंद नहीं आया, ठीक है

    ख़ुद पर दरवाजा मत बंद करो, मैं जा रहा हूँ

    अच्छा, फ़्री में दे रहा हूँ यह चुंबक, रख लो

    यह दिखाता है एक और दिशा, दसों दिशाओं से अलग

    ठीक उस तरफ़, जहाँ तुम होते हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : शक्ति महांति
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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