यह स्वच्छ धूप—
ख़ामोश खजूर
चमकती चट्टानों
जगमगाहटों
ज्योति-रेखाओं
प्रकाश स्फुलिंगों—की घड़ी है
मैं विशाल ब्राज़ील का संगीत सुन रहा हूँ
मैं सुन रहा हूँ—इगुआस्सू के गरजते हुए घोड़े नंगी
चट्टानों को कुचल रहे हैं,
आर्द्र झोकों में नाच रहे हैं, भीगे खुरों से फेन और हरे-भरे
संगीत वाली
सुबह को चीरने बढ़ रहे हैं
मैं तेरा गंभीर स्वर सुन रहा हूँ, तेरा ख़ूँख़ार और गंभीर स्वर,
ओ अमेजन नदी!
तेरे अलसाए सैलाब, तेल की तरह गाढ़े, क्षण प्रतिक्षण विस्तार
तोड़ते
हुए, किनारों से कीचड़ निगलते हुए, सदियों पुराने पेड़ों की
जड़ें उखाड़ फेंकते हुए, द्वीपों को बहाकर खींच ले जाते
हुए और
समुद्र को पागल भैंसे की तरह शहतीरों तनों शाख़ों और
झाड़ियों से मथते हुए
मैं सुन रहा हूँ पछुवा हवाओं में धरती को चिटखते हुए, धरती
जो ख़ानाबदोशों के
नंगे धूलभरे पावों के नीचे हाँपने लगती है, धरती जो धूल
बनकर
ख़ामोश बादलों के झंझावात के रूप में जो ज़ीरों की सड़कों
पर
सर धुनती घूमती है, क्रेटों के सूखे मैदानों में धूल बनकर
बिछ जाती है।
मैं वन कांतार का विहग रव सुन रहा हूँ। अलापें, तान, चह-
चहाहट, चमक,
कूक, केका, चोंचों की कटकटाहट, मोटे तारों की तरह
गंभीर झंकार वाली
ध्वनियाँ, ढोल की गमक, कर्कश गलों का स्वर, पंखों की
फड़फड़ाहट
झिल्लियों की झंकार, फुसफुसाहट, सपनीली पुकारें,
लंबी दोहरी
पुकारें—आकाश के नीचे घने जंगल!
मैं पानी के चश्मों को हँसते हुए सुनता हूँ लालची मछलियों को
गुमराह
करते हुए, पानी के नीचे छिपी चट्टानों की दरारों में मछलियों
के आश्रयों को कुरेदते हुए जल की कलकल ध्वनि!
मैं सुनता हूँ गन्ने पेरते हुए कोल्हुओं की चूँ रूँ रूँ, कड़ाह में
गिरते हुए मीठे
रस की मीठी ध्वनि, रबड़ वृक्षों के बीच बालटियों की
खटर पटर
और राहें बनाती हुई कुल्हाड़ियाँ
और शहतीरे चीरते हुए आरे
और धूप में झूलती हुई अमराइयाँ
और दलदलों में सोते हुए घड़ियालों को देखकर दाँत
किटकिटाने
वाले पेक्ककारियों की आवाज़
मैं सुनता हूँ सारे ब्राज़ील को गाते हुए, बोलते हुए, पुकारते हुए
झूमती हुई झाड़ियाँ
चीख़ते हुए भोपूँ
खड़खड़ाती, हाँपती, चीख़ती, गरजती हुई मिलें
विस्फोट होती हुई नलियाँ,
घूमते हुए क्रेन,
चलते हुए पहिए,
भागती हुई रेलें,
घाटियों और पठारों की आवाज़ें,
गाय बैलों की घंटियाँ,
घोड़ों की हिनहिनाहट,
चरवाहों के गीत,
घंटों की घनघनाहट,
सट्टे के बाजारों की चीख़ पुकार,
तोतों की तरह नंबरों की रटना,
गगनचुंबी अट्टालिकाओं के नीचे
सड़कों का शोर शराबा,
उन विभिन्न जाति के लोगों की भाषाएँ
जिन्हें बंदरगाहों की समुद्री हवा
जंगलों की ओर बहा लाती है—
इस पवित्र धूप की घड़ी में मैं ब्राज़ील का गीत सुन रहा हूँ
ब्राज़ील के समस्त वार्तालाप हवाओं में उड़ रहे हैं
कहवा की झाड़ियों के पास किसानों की बातचीत
सोने की ख़ानों में मज़दूरों की बातचीत
फ़ौलाद की भट्टियों में श्रमिकों की बातें
देहात घरों के दालानों में सैनिक अफ़सरों की बातचीत
लेकिन इन सबों से ज़्यादा स्पष्ट जो मुझे सुनाई पड़ रहा है
इस पवित्र धूप—
ख़ामोश खजूर
चमकती चट्टानों
जगमगाहटों
ज्योति रेखाओं
प्रकाश स्फुलिंगों के कण में
वह है ओ ब्राज़ील! तेरे पालनों के पास गाई जाने वाली
लोरियों का स्वर
तेरे अनगिनत पालने, जिनमें दुधमुँहे भोले भाले सरल बच्चे
सो रहे हैं!
कल आने वाली पीढ़ी के लोग!
- पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 348)
- संपादक : धर्मवीर भारती
- रचनाकार : रोनाल्द द कैरवाल्हो
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
- संस्करण : 1960
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