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चलो चाँद पर चलें

chalo chand par chalen

प्रमिला शंकर

प्रमिला शंकर

चलो चाँद पर चलें

प्रमिला शंकर

और अधिकप्रमिला शंकर

    धरती पर धरती के लिए

    बैर-भाव देखकर

    रोता है उदास मन

    कब मिटेगी दूरियाँ

    कब मिटेगी दुश्मनी

    कि कब आएगा वह दिन

    कब होगा वह आरंभ

    जब मंजुल मृदुलघोष से

    गूँजेगा अंबर

    जब धरती नाचेगी झूमकर

    नहीं... सूरज ढक गया है

    कुहासे से

    गहरे काले प्रलयंकारी

    बादलों से...

    क़दम-क़दम पर छल है यहाँ

    बंजर धरती को लेकर भी

    रक्त बहता है

    शव जलते हैं

    श्वान नोचते हैं

    आमिष की आस में

    झपटते हैं... चील-कव्वे और गिद्ध

    इस उद्दाम आकुल

    तीव्र अभीप्साओं की धरती पर

    मूक क्रंदन है सबके भीतर

    छोड़ दो गर शहर

    तो गाँव में और अधिक

    रिसता है मन

    कहाँ हैं वे निर्दोष नभ की निहारिकाएँ

    कहाँ हैं अमृत-बेला की प्रभातियाँ

    उत्सव

    रम्मत

    मेल

    मिलाप

    धरती के झगड़े धरती की कुंठाएँ प्राचीरों की घुटन

    आस्था-अनास्था की रपटन

    विडंबनाओं से उपजी

    गहरी वेदनाएँ अशांति

    वैमनस्य का घटाटोप कुहासा

    छलकती आँखें

    सिहरता छिटकता

    बिखरता टूटता छिन्न मन

    कहाँ जाकर ठहरे अब

    यह कोमल कमल सा बैरागी

    परागी दृष्टि मन

    चाँद सूरज की दूरियों को

    नापता रहा है मनुष्य

    हम भी वह नाप उधार लेकर

    तारों में बसे चलकर

    या चाँद पर उतर जाएँ

    चर्खा कातेंगे चाँद पर

    हल जोतेंगे चाँद पर...

    रोटियाँ सकेंगे चाँद के उजाले में

    चलो चलें चाँद पर

    हम धरती से उकताए उदार

    अनुरागी पीयूषी मन

    चलें गगनचुंबी विश्वास लिए

    चलो चाँद पर चलें।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रमिला शंकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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