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किसने बचाया मेरी आत्मा को

kisne bachaya meri aatma ko

आलोकधन्वा

आलोकधन्वा

किसने बचाया मेरी आत्मा को

आलोकधन्वा

और अधिकआलोकधन्वा

    किसने बचाया मेरी आत्मा को

    दो कौड़ी की मोमबत्तियों की रोशनी ने

    दो-चार उबले हुए आलुओं ने बचाया

    सूखे पत्तों की आग

    और मिट्टी के बर्तनों ने बचाया

    पुआल के बिस्तर ने और

    पुआल के रंग के चाँद ने

    नुक्कड़ नाटक के आवारा जैसे छोकरे

    चिथड़े पहने

    सच के गौरव जैसा कंठ-स्वर

    कड़ा मुक़ाबला करते

    मोड़-मोड़ पर

    दंगाइयों को खदेड़ते

    वीर बाँकें हिंदुस्तानियों से सीखा रंगमंच

    भीगे वस्त्र-सा विकल अभिनय

    दादी के लिए रोटी पकाने का चिमटा लेकर

    ईदगाह के मेले से लौट रहे नन्हे हामिद ने

    और छह दिसंबर के बाद

    फ़रवरी आते-आते

    जंगली बेर ने

    इन सबने बचाया मेरी आत्मा को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुनिया रोज़ बनती है (पृष्ठ 86)
    • रचनाकार : आलोकधन्वा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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