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मैं तुम्हें देर तक नहीं देखता

main tumhein der tak nahin dekhta

अभिजीत

अभिजीत

मैं तुम्हें देर तक नहीं देखता

अभिजीत

और अधिकअभिजीत

    मैं तुम्हें देर तक नहीं

    दूर तक देखता हूँ

    जैसे टूट कर देखता हूँ

    जैसे पानी किश्तों में स्थानों को देखता है

    कभी बाराबंकी पहुँच जाता है

    कभी चौक

    कभी-कभी सड़क के इस पार से देखता हूँ

    सड़क के इज़राइल वाले छोर पर बरसात होती है

    दूसरे देशों की बारिश में अपना प्रेम

    बहुत देर तक देखते रहने में परिश्रम का बोध है

    दूर देखने का काम अचूक जिज्ञासा है

    गैलीलियो की याद दिलाता है

    गोया तुम्हें देख रहा हूँ या दूरबीन से गैनामीड

    बात का सिरा किसी इशारे में

    छूट जाता है

    तारा टूट जाता है

    आकाश में गर्जन की तरह नहीं

    तुम्हारे सधे हुए हाथ जिस तरह लगाते हों टाँके

    बिना किसी ध्वनि के

    यह चमत्कार

    घंटों इस काग़ज़ के भूगोल में

    यहाँ-यहाँ करते हुए

    कई दृश्य कई चित्र कई कविताएँ

    यहाँ-यहाँ जैसे और यहाँ

    और यहाँ

    इस तरह बनाता चला जाता हूँ

    तुम्हारे अलग-अलग रूप

    देश, नदियाँ, पहाड़, झीलें, पेड़, बच्चे, फूल, कोयलें

    एक पृथ्वी है प्रेम करने वाले व्यक्ति का खुला हुआ मुँह

    अंधकार से सराबोर ऐसी कि बहुत ठिठुरती हुई

    हर तरफ़ युद्ध होते रहते हैं

    प्रेम करना इसलिए भी कठिन है कि आप

    एक पूरी पृथ्वी की अकेले करने में लगे हैं देख-भाल

    पूरी पृथ्वी के साथ किए जाने वाला प्रेम है इस काग़ज़ पर

    दूर-दूर तक तुम

    दूर-दूर तक तुम

    स्रोत :
    • रचनाकार : अभिजीत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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