मैं क्या हूँ : आदिवासी विमर्श
main kya hoon ha adivasi vimarsh
मैं जंगल में रहता हूँ
बाँस की टल्लियों से घर बनाकर
खुले आकाश के छप्पर के नीचे
बहती नदियों के बीच
नहीं बेचता आपकी तरह हवा-पानी
नहीं बनाता आपकी तरह धरती को घोंटकर मकान
क्योंकि नहीं हूँ इतना व्यवसाई
कि बेच सकूँ ईमान आपकी तरह
उसके लिए जिस प्रकृति ने दिया है हमें ये सब
लेकिन
लेकिन इतना होने पर भी
आपकी नज़रों में
मैं हूँ केवल ‘एक आदिवासी’
जिसे आप समझते रहे
जंगली, बर्बर और असभ्य
लेकिन मेरी नज़र में
मेरी नज़र में तो
मैं पुरुष हूँ प्रकृति का
एक स्त्री हूँ संभावनाओं की
और
और एक बच्चा हूँ पृथ्वी का
जो चाहता है सतत पोषण और विकास।
- रचनाकार : शिवानी कार्की
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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