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अक्टूबर

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रवि यादव

रवि यादव

अक्टूबर

रवि यादव

और अधिकरवि यादव

    बहुत कुछ खोने के बाद भी

    खोया हुआ-सा कुछ बचा रह जाता है हमारे पास

    कुछ बचने के बाद भी

    कितना खोया हुआ लगता है बहुत कुछ

    तितली अपने रंग खो देती है

    और आसमान नीला पड़ जाता है

    खोए हुए तितली के रंग की तरह

    खो जाती हैं स्मृतियाँ

    और बस जाती हैं

    एक गहरे रंग का दाग़ बनकर

    तुमने आख़िरी बार आवाज़ क्यों दी थी!

    उस आवाज़ में अगर शब्द होते

    तो कितना कुछ जान पाता मैं

    उस आवाज़ की ध्वनि में भटक रहा मैं

    उन प्रश्नों के जवाब मैं ढूँढ़ता हूँ ख़ुद की नसों में

    मेरी नसों में ख़ून के बजाय बहते हैं वे प्रश्न

    एक जाना हुआ प्यार अनजाने में जीते हैं

    अनजाने में जानते हैं सब कुछ

    प्यार की भाषाओं के हरसिंगार झर नहीं पाते किसी सुबह!

    वे अटके रह जाते हैं किसी टहनी

    किसी पत्ते पर झरते-झरते

    अनजाने में मैं जानता हूँ तुम्हारा प्यार

    अनजाने में तुम जानती हो हमारा प्यार

    अनजाने में ही छिपी होती है

    जानने की सबसे बड़ी धुन

    सब कुछ जानते हुए कितने अनजान रहे हम

    फिर भी कैसे मान लूँ मैं कि अनजान थी तुम प्यार से

    उस रात छत से गिरते वक़्त तुमने मेरा नाम क्यों लिया!

    क्यों पूछा?

    ‘व्हेयर इज डैन!’

    स्रोत :
    • रचनाकार : रवि यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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