लालटेन जलाना उतना आसान बिल्कुल नहीं है
जितना उसे समझ लिया गया है
अव्वल तो तीन-चार सँकरे कमरों वाले छोटे-से मकान में भी
कम से कम तीन लालटेनों की ज़रूरत पड़ती है
और रोज़ किसी को भी राज़ी करना मुश्किल है कि
वह तीनों को तैयार करे
और एक ही आदमी से हर शाम
यह काम करवा लेना तो असंभव है
घर में भले ही कोई औरत न हो
सिर्फ़ एक बाप और तीन संतानें हो तो भी न्यायोचित ढंग से
बारी-बारी तीनों से लालटेनें जलवाना कठिन नहीं
यह ज़रूरी है कि जब दिया-बत्ती की बेला आए
तो यह न मालूम हो कि लालटेन पीपे या शीशी में तेल नहीं है
और शाम को साढ़े छह बजे निकलना पड़े मिट्टी के तेल के लिए
जो दो तरह का आता था
घासलेट और सफ़ेद
सस्ता और घटिया था घासलेट
बू सफ़ेद से भी उठाती है
लेकिन निस्बतन ख़ुशबू जैसी ही होती थी
महीने के आख़िर में अगर घासलेट लाना ही पड़ता था
तो उसे शीशी में नहीं टीन के डिब्बे में लाया जाता था
उससे रोशनी ही नहीं इज़्ज़त भी ख़राब होती थी
पड़ोसियों से मिट्टी के तेल के उधार की पेचीदगियाँ बिल्कुल अलग विषय हैं
क्योंकि उसका सीधा संबंध लालटेन जलाने के हुनर से नहीं है
यह समझाना कठिन है कि आख़िर कोई लालटेन
अच्छी तरह क्यों जलायी जाए
वह अल्पायु में शुरू हुआ एक आजीवन ख़ब्त भी हो सकता है
लेकिन लालटेन जलाने का लुत्फ़ मुख्यतः तेल से है
और उसमें उतनी ही केंद्रीय भूमिका अच्छी बत्ती
और शायद उससे भी ज़्यादा
उम्दा साफ़ किए गए काँच की है
भलाई इसी में है कि बत्ती से बेवजह छेड़छाड़ न की जाए
लेकिन अगर उस पर ज़्यादा गुल जमा हो ही गया हो
तो उसे उँगलियों से नोचना बेवकूफ़ी होती है
क्योंकि उसके बाद जब उसे बाला जाएगा
तो चारों तरफ़ से पुच्छल तारों जैसी दुमदार रोशनी निकलेगी
और काँच बच भी गया तो काला तो हो ही जाएगा
कैंची से काटने में भी रेशे निकल आते हैं
या टेढ़ी-मेढ़ी कटती है
उसे ब्लेड जैसी चीज़ से काटा जाना चाहिए वह भी एहतियात से
लेकिन यह तभी मुमकिन है जबकि वह काफ़ी लंबी हो
ऐन मौके पर यह पता लगना कि बत्ती छोटी है
लालटेन की कुप्पी को मिट्टी के तेल से बिला वज़ह
लबालब भरने पर मजबूर करता है
और तब भी वह साढ़े नौ बजे तक दम तोड़ देती है
बत्ती ठीक करना और तेल भरना रोज़ के काम नहीं हैं
लेकिन जो काम सबसे ज़्यादा सलीक़े और मेहनत और निगाह की माँग करता है
वह है शीशे को साफ़ करना
अव्वल तो यह ध्यान रखना पड़ता है
कि क़ब्ज़े से निकालते वक़्त
उसे ग़लत तरफ़ से तिरछा न कर दिया जाए कि वह टूट जाए
फिर यह कि शीशा सिर्फ़ बढ़िया राख से ही चमक सकता है
यानी या तो अच्छी जलाऊ लकड़ी की राख हो
या फिर सख़्त कंडे की
उसमें यदि रेत या कंकड़ हुए तो शीशा खुरच जाएगा
दाँतों में तकलीफ़देह किरकिराहट होगी सो अलग
शीशी के अंदर लगे धुएँ से खेल भी किए जा सकते हैं
मसलन उँगली से कोई तस्वीर बनाई जा सकती है
आपका नाम वग़ैरह लिखा जा सकता है
या फ़लाँ गधा है वग़ैरह
लेकिन ऊपर से शुरू करते हुए नीचे तक आते-आते
सारी कलौंच मिटानी पड़ती है
और अंदर से ही नहीं बाहर से भी
काँच को साफ़ करना होता है
साफ़ काँच खिलता ही दुबारा राख से माँजने से है
आह कितना ऐंद्रिक है लालटेन के शीशे को धीरे-धीरे निखारना
फिर चाहो तो उसे किसी पुरानी साड़ी के टुकड़े से और चमका दो
तब तो उस पर साँस की नमी या उँगलियों की छाप भी
अखरने लगे है
शीशे को उसके क़ब्ज़े में फिर बैठाना
ऊपर से लालटेन के कुंदे में अँगूठा डालकर ढक्कन उठाना
और काँच को उसके नीचे बैठाना भी
सावधानी के काम हैं
क्योंकि ग़लत ढंग से अँगूठा छोड़ने से
शीशा फँस या टूट सकता है
लेकिन इससे पहले यह भी देख लेना होगा
कि लालटेन की अंदरूनी गुंबद पर
महीन धुआँ इतना न जम गया हो
कि कुंदा छोड़ते ही बत्ती पर बेआवाज़ आ गिरे
वह इतने चुपचाप जमता है कि किसी को उसकी
याद ही नहीं रहती
यह सब उस वक़्त
जबकि शीशा चटका या फूटा हुआ न हो
और उम्दा हो
क्योंकि अक्सर लालटेन के काँच सस्ते भी मिल जाते हैं
लेकिन उनमें महीन बुलबुले होते हैं या मोटाई बराबर नहीं होती
या अपने आप में ज़र्द होते हैं
और सिर्फ़ महँगा काँच ही अच्छा नहीं होता
उसे परखने के लिए सधी उँगलियाँ कान और तजुर्बा चाहिए
जो एक अरसे तक लालटेन जलाने के बाद ही आते हैं
बेहतर यही है कि काँच बैठालने से पहले ही
बत्ती थोड़ी-सी जला ली जाए
और फिर लालटेन कसी जाए
उसके बाद धीरे-धीरे लौ को बढ़ाइए
देखिए रोशनी कमरे में कहाँ तक फ़ैल जाएगी
अपने पीछे सब आपकी छाया की विशाल उपस्थिति है
उजाले में सब कुछ उभर आया है
उँगलियों पर केरोसीन और राख की जो मिली-जुली कसैली बू है
वह एक स्थिर स्निग्ध जलती हुई बत्ती की सुगंध में खो रही है
लालटेन जलाने की प्रक्रिया में लालटेन बुझाना
या कम करना भी शामिल है
जब तक विवशता ही न हो तब तक रोशनी बुझाना ठीक नहीं
लेकिन सोने से पहले बाती कम करनी पड़ती है
कुछ लोग उसे इतनी कम कर देते हैं
कि वह बुझ ही जाती है
या उसे एकदम हल्की नीले लौ तक नीचे ले जाते हैं
जिसका एक तरह का सौंदर्य निर्विवाद है
लेकिन लालटेन के हिलने से या हवा के हल्के से झोंके से भी
उसके बुझने का जोख़िम है
लिहाज़ा अच्छे जलाने वाले
लालटेन को अपनी पहुँच के पास लेकिन वहाँ रखते हैं
जहाँ वह किसी से गिर या बुझ न जाए
और बाती को वहीं तक नीची करते हैं
जब तक उसकी लौ सुबह उगते सूरज की तरह
लाल और सुखद न दिखने लगे
- रचनाकार : विष्णु खरे
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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