लगभग सिर्फ़ एक शब्द नहीं है
lagbhag sirf ek shabd nahin hai
एक बरसात से दूसरी बरसात तक जाते हुए
बीच में मिलती है सर्दी और गर्मी
बहुत से लोग उनकी प्यास,
उदास कुत्ते और उनकी भूख
बेहाल परिंदे और उनके क्षतिग्रस्त पंख
एक नदी और उसकी अनंत व्यथाएँ
एक कहानी और उसके हज़ार संभावित अंत
मेरी माँ की टूटी ऐनक
उस ऐनक से छिटक कर गिरा एक नवजात दृश्य
भाषा की माँद में सोती एक ख़ूँख़ार असमर्थता
और एक निरीह कर्तव्यबोध
एक कविता
और बहुत कुछ अपरिभाषित-अपरिचित
अपने आपको छू लेता हूँ रह-रहकर
यह जाँचने के लिए कि
चलते हुए तो लगभग जीवित था
पहुँचते हुए लगभग मर तो नहीं गया?
- रचनाकार : अनुराग अनंत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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